Tuesday, February 19, 2019

वीरान

वृक्ष कल्प तरु प्रहार वन वीरान हुए
प्रकृति के शत्रु निजस्वार्थ शैतान हुए
मिटा दिए भूमी से जंगल अनगिनत
प्रकृति ने भी रोष से किया लतपत
नयन तके राह कब मानसून दे दस्तक
प्यासी धरती पे रिमझिम न अबतलक
बंजर भूमी नवीन कोपल की आस में
किसान निःजल जूझते अंतिम स्वास में
हुई नदियां रेत की सूखी डगर प्यास में
कम न हुए इंसान आघात के प्रयास में
भू बिन वृक्ष दुष्परिणाम से अंजान हुए
द्रवित नेत्र सूखे अधर कृषक बेप्राण हुए
स्वयं शत्रु मनु निजस्वार्थ में शैतान हुए
मिटाए कल्पतरु वृक्ष, जंगल वीरान हुए।।।।

सब मिल जाएगा बाज़ार में

यू तो सब मिल जाएगा बाज़ार में
सौदे नही आत्मीयता स्नेह प्यार में
नही मिलते बीते पल इस संसार मे
फिर क्यों ???
बावरा मन बचपन के इंतजार में
कागज की कश्ती वह टूटे खिलौने
वो हरियाली छत वो दूब के बिछौने
लूका छुपी के खेल मोहल्ले के बच्चे
वह पुराने दिन वह सुहाने थे अच्छे
गिलट के सिक्के गुल्लक में जोड़ के
महल बनाएंगे गुल्लक को तोड़ के
तितली और जुगनू पकड़ने की होड़
उत्साह उमंगों भरे थे जीवन के मोड़
कल की न चिंता न थे द्वंद विकार में
जहाँ ममत्व स्नेह था डाँट व दुलार में
उन पलों को खोजता मन निराधार में
काश लौट सकते बालपन के संसार मे
निराश मन बीते बचपन के इंतजार में
बस वही नही इस भीड़ और बाज़ार में
फिर क्यों ???
बावरा मन बचपन के इंतजार में।

हाल-ऐ दिल जान लेती है

न जाने कैसे वह हाल-ऐ दिल जान लेती है
माँ मेरी परछाई से भी मुझे पहचान लेती है
दूरियां कितनी भी हो, चाहे लाख छुपाऊ मैं
होगी परेशां वह, सोचता हूं कुछ न बताऊँ मैं
किंतु परंतु फिर भी, हर स्तिथी  भान लेती है
हर दुविधा से उबारने की मन में ठान लेती है
मैं माँ बात करता हूँ जब निराश मन हारता है
जीत जाता हूं जब कोई दुलार के पुकारता है
वह माँ ही है बेटा कैसा भी हो पर जान देती है
जो नन्हे खिलौने को पाल पोस पहचान देती है
संस्कारो की पहली क्यारी जो सद्ज्ञान देती है
हाँ मेरी माँ मेरी है ये बात ही अभिमान देती है
बसंत कितने ही हमने देखे गोद माँ की भाती है
सुख की तुलना कहाँ जो ममत्व से सहलाती है
एक वह ही है जो हाल-ऐ दिल जान लेती है
माँ मेरी परछाई से भी मुझे पहचान लेती है

मैं लौट आया

गीत मस्तियों के गुनगुनाकर
झरने पहाड़ हरियाली पार कर
अनंत दृश्य नेत्र में समेट कर
मैं लौट आया वादियों से घूम कर
मन मोहक प्रकृति को चुम कर
छणिक पल मदमस्त झूम कर
अलौकिक सौंदर्य से निकल कर
मैं लौट आया वादियों से घूम कर
देवदार घिरे जंगलो का शांत पहर
जहा जून के ताप का था न कहर
शीतल हवा से तपते अपने शहर
मैं लौट आया वादियों से घूम कर

कलम बनाये कठपुतली

कलम बनाये कठपुतली कुछ अच्छा सा लिख देते है
चाटुकार सराहे जाते हम भी सरेबाज़ार बिक लेते है
संसद के गलियारों में घूम रहे कलयुगी भगवान
जय जवान जय किसान दोनों सहे घोर अपमान
सब दिखता खुली आंख से चलो आंख बंद कर लेते है
घाटी की जो करे सुरक्षा वे अपमानित थप्पड़ खा लेते है
भूखे पेट अन्न उपजाने वाले , मौत को गले लगा लेते है
उनकी व्यथा से क्या लेना देना फूल या पंजा अपना लेते है
चमचे बन के लाख फायदे सियासतदानों के संग हो लेते है
इन्सानी लाशों से मुख फ़ेर चलो गौ हत्या पे आंसू बहा लेते है
दिन को अगर रात कहे तो सूरदास बन काली रात बना लेते है
कलम बनाये कठपुतली कुछ अच्छा सा लिख देते है
चाटुकार सराहे जाते हम भी सरेबाज़ार बिक लेते है

मेरे पापा

Happy Father's day
************************
मैं हैरान था मैं बेहद परेशान था
जिंदगी के हर मोड़ इम्तहान था
वक्त के साथ बदलते हुए हालात
दिन पे दिन एक नये मुश्किलात
आज जिन्हें देख कर घबराता हूँ
अपनी ही परछाई से कतराता हूँ
बेबस ख़ुद को हारा हुआ पाता हूं
ये सोच असमंजस में पड़ जाता हूं
कैसे घर की हर हाल जरुरत को
कैसे छोटी बड़ी हठ और मुझको
बड़े सहज मेरे पिता निभा जाते थे
मेरे हर सपने को हाथों में थमाते थे
उनकी शिद्दत और पसीने से अंजान था
मुझको तो बस मेरी जरुरत का ध्यान था
पालन उनका त्याग निष्ठा व्याख्यान था
आज उसी होदे पे मेरा भी इम्तिहान था
कोशिस पूरी पर मैं हैरान व परेशान था

माँ बाप

जिन्दगी हो लाख़ दर्द भरी
         पर दर्द का असर होने नही देते।
मेरी ख़बर में मसरूफ़ इतने की
               अपनी ख़बर होने नही देते।
उन तक मुफ़लिसी हो की फैलसूफ़ी
                    पर फिक्र होने नही देते।
माँ बाप औलाद पे निछावर
         जरूरतों का बसर होने नही देते।
बेशक भूखें ही सो जाएं पर
      कोई ख़्याल-ऐ कसर होने नही देते।
उनकी नेमतों को जाते है भूल,
         जो लख्तेजिगर को रोने नही देते।
ख़ुदा खोजते है हम वो रूबरू हम से
                      पर ख़बर होने नही देते।
उन्ही की दुआओ का असर.....
जिन्दगी हो लाख़ दर्द भरी पर
                 दर्द का असर होने नही देते।

भोजन तो खिलाइए

योग दिवस मनाइए
पर पहले भर पेट भोजन तो खिलाइए
क्योकी....
जिंदगी बदकिस्मती की जोग रही।।
है कु-पोषण ग्रसित हर रोग यही।
हांडी बर्तन खाली खाली भोग नही।।
इन्हें है निवाले कि दरकार योग नही।

दोस्त

बचपन से जवानी तलक जो मिलते गए।
समय के साथ रेत की तरह जो फिसलते गए।
वक्त को आसान और दर्द भुलाने के सामान।
रिश्तों से अलग पर रिश्तों से बेहतर पहचान।
जो हाल-ए दिल को बारीकी से समझते गए।
हौसले जिनके हम दौर आसां निकलते गए।
वह दोस्त ही थे वह दोस्त ही है वह दोस्त ही रहेंगे।
ऐ दोस्त.....
आज ही नही हर रोज तुम्हे तहे दिल सलाम कहेंगे।
Happy friendship day

मीठे अपने बोल।

बंदे यादों में रह जाएंगे मीठे अपने बोल।
सब को ही जाना हैं, ये सारे बन्धन तोड़।
बड़ी नाज़ुक सी होती है जीवन की डोर।
कब तक की साँसे है, कब तक की भोर।
दौलत रह जाती है, बस करनी का मोल
बाद यादों में रह जाएंगे मीठे अपने बोल।

हाथों की लकीरों को ख़ुद हाथों से लिख
जां जाने के बाद भी तू  यादों में टिक
छांपे कब मिटती है अज़ब भीड़ से दिख
ख़ुद के ही हाथों से तक़दीर के पन्ने लिख
दुनियां जहान में अनमोल निशानी छोड़
बाद यादों में रह जाएंगे मीठे अपने बोल।

दे खुशियों की वज़ह तू, दूजे के होठों पे
वह जीना क्या जीना प्यारे जो तन्हा खपे
रंजो गम को भुला के हर एक से नाता जोड़
बीती खट्टी बातों को तू बहती दरियां में छोड़
है मन में क्यों दूरी, इस मन को तू झिंझोर
बाद यादों में रह जाएंगे मीठे अपने बोल।

दौलत रह जाती है, बस करनी का मोल
बाद यादों में रह जाएंगे मीठे अपने बोल।

सब कुछ बदल

अब सब कुछ बदल गया
रेल दुर्घटनाएं तो अब होती नहीं
रोगों का निदान मिल गया
मासूमियत चिर निंद्रा सोती नहीं
गोदामों में गेहूं सड़ता न यहाँ
भूख़े बच्चे को देख माँ रोती नहीं
रोजगार संसाधन बढ़ गया
बेरोजगारी तले जिंदगी खोती नहीं
जरूरतों का बाज़ार भर गया
जनता महँगाई का भार ढोती नहीं
राष्ट्रवाद एक नारा मिल गया
धर्म सम्प्रदाय की जंग होती नही
गौ माता को सम्मान मिल गया
गौशाला में कोई दुर्गति होती नहीं
अपराध मुक्त समाज हो गया
हाय-हत्याओं की देश मे पोथी नहीं
आ गए मेरे देश मे अच्छे दिन
नए वादे, जी एस टी, नोटबन्दी यहीं
अब सब कुछ बदल गया
दांव पेंच की राजनीति अब होती नहीं

अपना देश

जिस पर चलते जितने केस
उस को पूजे अपना देश
बाबा संत साधु समाज
करे घृणित ये सारे काज
सत्ता करे समर्थन जिनका
बाल न बांका होए उनका
खुले आम मनमानी करते
एक दोये ही हत्थे चढ़ते
हत्थे चढ़े पर रहे विशेष
अंधभक्तों से भरा ये देश
कैद अदालत चाहें केस
हर हाल में पूजे देश।

कौन बचाएगा

जिसको होश नहीं ख़ुद का
उसको कौन बचाएगा
लहरों में नौका कब चलती
नाविक ही उसे चलाएगा
यह जग एक मैराथन जैसा
जो जितना दौड़ पायेगा
हार जीत के हर मंथन से
स्वंय निखर कर आयेगा
वे निष्काषित हो जाएंगे
जो क़िस्मत का रोना गाएगा
एक विधाता असंख्य लोग
किस किसको पार लगायेगा
कर्मभूमी पर हरित उमंगें
जो जैसा बोये वैसा खायेगा
हर कोई सहारा हो सकता
यदि स्वंम को सकल बनायेगा
वरना भीड़ बड़ी इस जग में
इस मंडल में  खो जायेगा
जिसको होश नहीं ख़ुद का
उसको कौन बचाएगा।

कैसे जय जयकार लिखे

लिखने को तो लिख देता पर कैसे जय जयकार लिखे
जो अंतरमन को झकझोर रहा उसे कैसेे स्वीकार लिखे
संसद सत्ता पक्ष विपक्ष तक कितने ही मुद्दे बेकार दिखे
पाँचसितारों के चकाचोंध में ओझल सा अंधकार दिखे
उन पहलू पे कलम हम्हारी क्यों न दोधार तलवार लिखे
झोपड़ से सड़को तक खोते बचपन को इस बार लिखे
नई योजना नई नीतियां खोखली बातें न मनुहार लिखे
लिखना है तो क्यों न अथक पीड़ा का वह संसार लिखे
नीली हरी बत्ती अनदेखा करती क्यों न वो विकार लिखे
दूध नहीं स्तन में खून पिलाती माँ का सीना तार तार लिखे
बेबस गरीब बाप का रुदन फिर कैसे हम श्रंगार लिखे
स्वपन देखना जिनका दूभर क्यों न वो पीड़ा प्रहार लिखे
अनदेखे मजबूरों पे बेपरवाह सियासत और सरकार दिखे
बीते वर्ष आजादी को फिर भी गुलाम चलो धिक्कार लिखे
गर कोई थामने इनको आये तो बोझिल दिल उपकार लिखे
वरना हमाम के नंगो पे क्यों नाहक ही जय जयकार लिखे
जो अंतरमन को झकझोर रहा उसे कैसेे स्वीकार लिखे

जीवन स्वप्न

जीवन स्वप्न साकार बने चलो एक हुंकार भरे।
गिरते कदमो से उठकर चलो फिर एकबार चले।
कंटक पथ पर रुकना चलना नाहक ही जंजाल बने।
मन का विश्वास अडिग रहे अजय एक आकार बने।
दर्द हार और निराशा है विफल मन की परिभाषा।
स्वपनों को पलने दो जब तक पूर्ण न हो अभिलाषा।
नित नई चुनोती लेकर आती धीर धरो को नहीं हताशा।
हो विफलता का मंथन रहे सर्जन जीत की जिज्ञासा।
नवसंकल्पो की धारा में करो सदा अविश्वास परे।
थमने न दो कदमो को कितना भी अवरोध मिले।
जीवन स्वप्न साकार बने चलो एक हुंकार भरे।
गिरते कदमो से उठकर चलो फिर एकबार चले।

सूना आँगन बेसुध अम्मा

दिवाली का पर्व और वीरगति को प्राप्त सैनिक की पत्नी और पुत्र की बेबसी का चित्रण करती मेरी रचना।

सूना आँगन बेसुध अम्मा
कैसी यह ब्यार बही
हमने तो तुझे हँसते देखा
माँ क्यो आज श्रंगार नही
सूना आँगन बेसुध अम्मा
कैसी यह ब्यार बही
दीपावली का त्योहार है आया
क्या तुमको तनिक भी याद नहीं
न पापा आये न संदेशा आया
बूझो तो क्या बात हुई
मैं सौर्यवीर पापा का बेटा
मुझको भी है ज्ञात यही
सीमाओं की रक्षा ख़ातिर
सैनिक पिता क्यों आये नहीं
सूना आँगन बेसुध अम्मा
कैसी यह ब्यार बही
टूटी चूड़ी बिखरी मांग
माँ क्यो आज श्रंगार नहीं
वीर की विधवा कैसे बताएं
वीर पिता का अब साथ नहीं
हुई शहादत लड़ते लड़ते
साँसे गति को प्राप्त हुई
गोद मे लेकर सहलाने वाला
दिवाली क्या न आएगा कभी
नाहक ही इंतजार करे तू
पूछे माँ क्यों श्रंगार नहीं
सूना आँगन बेसुध अम्मा
कैसी यह ब्यार बही..

मनोनीत हुए गरीबी से

मनोनीत हुए गरीबी से
हमको टुकड़ो पे पलना है
रहा बसेरा फुटपाथो पे
यही जीना यही मरना है
पीड़ा और वेदना से
जीवन नित दो चार हुआ
नित नई कूटप्रश्न से
अपना साक्षात्कार हुआ
आश्रित स्वसंतानों से
बस जीवन की माया है
दयित्वों के इसी बोध से
मात्र सजीव ये काया है
भाग सकूँ इस रण से
अपने बस की बात नहीं
दुर्गमता के समागम से
मन तन को विराम नहीं
नील अचल के तारों से
अधिक समस्या जीवन की
अनुमान रहा हर पल से
दे जाएगा एक नई विपत्ति
नित नीर बहे नैनो से
भूख प्यास का खेला है
लगे मृत्यु भली जीवन से
स्वप्न सुखों की बेला है
मेरे जने आशाओं से
मुझे खिवैय्या मान रहे
की मैं दुःअवस्थाओं से
पार लगाऊंगा ये भान रहे
मैं भटकाऊ सच्चाई से
की तुम्हें वेदना सहना है
संभवतः तुझे इसी तरह से
जीवनपर्यंत रहना है
तुम मनोनीत गरीबी से
तुमको टुकड़ो पे पलना है
है रैन बसेरा फुटपाथो पे
यहीं जीना यहीं मरना है

रोहिंग्या

सर्वप्रथम निजमनुज की हरो वेदना पीर
देश के कर्ताधर्ताओ से है ये विनय अपील

रोहिंग्या शरणार्थियों के परिपेक्ष्य में
आप यथार्थ न तजे कर्तव्यनिर्पेक्ष में

यदि वे अभ्यागत रहते न नासूर बने
तो स्वयं को समझाते मन न क्रूर बने
शरणार्थी बन कितने आये जो छलते है
आतंकी खंजर बन वार पीठ पर करते है
माना आतंकियों से पृथक निरे अबोध है
किंतु स्वदेशीदीनो के हीत में ये अवरोध है
देश की अपनी भी अभिन्नय समस्याऐ है
भूख और गरीबी की भीषण वेदनाएँ है
देश उबारे उन दीनो को जो स्वदेशी है
अपितु कल्याण के शेष तर्क उपदेशी है
ज्ञात मुझे रोहिंग्या संकट ह्र्दयविदारक है
विपदाए हर अवस्था होती कष्टदायक है
यदि देखें तो उससे अधिक पीड़ा सहते है
अपनी भूमि पे गरीब शरणार्थी से रहते है
अतः उन स्वदेशी अपने ही जनमानस हेतू
यदि बना सके सुसज्जित जीवन का सेतू
तद सर्वजगत कल्याणहीत में हाथ बढ़ाये
जीवनपर्यंत सीमाओं में अभ्यागत बसाए

दुःखद भारत

यह अपने आज के दुःखद भारत की स्थिति है
जहाँ परम्परा पहचान भाषा एक परिस्थिति है
राष्ट्र राष्ट्रीयता राष्ट्रवाद लोकतंत्र की हत्या है
है सत्य संविधान से खेलना, बाक़ी सब मिथ्या है
हिंदी हिन्द हिन्दू भगवा आतंक की पहचान है
तो इनका स्तर गिराना प्रजातन्त्र का सम्मान है
अतः हिंदी दिवस में सिमटी मिलन सूत्र की रेखा
एक दिवस ही पूज रहे फिर पलट के किसने देखा
सब को सब कह सकने की मिली अजब स्वतंत्रता
अपनी सुविधा से तय कर दी सबने लोकतंत्र सहिंता
देश से बड़ा कद जनमानस का कैसी विसंगति है
खेद मुझे यह अपने आज के भारत की स्थिति है

वो काव्य अधूरा नीरस है

वो काव्य अधूरा नीरस है
जिसने वीरों का न गुणगान किया
करे सर्जन उन सूरवीरों पर
जिनने लहू लोहू का दान दिया
सौन्दर्यता पर गीत रचे
उन्मादों पर व्याख्यान किया
कलमकार के शब्द सजे
तो यौवन पर गुणगान किया
नकली चहरे नकली भाव
नित शब्दों से श्रंगार किया
खालिस खरे रूप धनी
वीरों का पौरुष बिसार दिया
जिन प्राणों की आहूत ने
सदा संरक्षित जीवनदान दिया
भूमि सुसज्जित पुष्पो से
कालांतर संवरे बलिदान दिया
घर आँगन को त्याग जिन्होंने
है देश प्रथम यह मान दिया
कलम मंझे उन के गीतों से
जिन वीरों ने जीवन वार दिया
तो लेखन में अमरत्व सजें
सरस्वती का वंदनवार किया
प्रिय प्रेयसी सौंदर्य सर्जन
कभी प्रेम प्रसंग मनुहार किया
चाँद चकोर मिलन आलिंगन
नव सृजन भाव श्रृंगार दिया
शब्दों को क्या किया समर्पित
यदि वीरों का न बखान किया
वो काव्य अधूरा नीरस है
जिसने शौर्यता का न गुणगान किया
करे सर्जन उन सूरवीरों पर
जिनने लहू लोहू का दान दिया
गीत ज्वलंत हो उन भावों से
जिस अमर वीर जवान जिया
निर्झर जल सा गतिमान जो
प्रहरी बन जीवनदान दिया
तपन तूफ़ानी शीत लहर में
जिसने ऋतुओ को निढाल किया
नदियां पर्वत मरुथल जंगल
जिसने यथा अवस्था ढाल लिया
उन वीरों के महिमामंडन का
यदि नही व्याख्यान किया
वो काव्य अधूरा नीरस है
जिसने वीरों का न गुणगान किया
करे सृजन उन सूरवीरों पर
जिनने लहू लोहू का दान दिया

थी पसंद वह

थी पसंद वह उसकी चाहत का अंदाजा था
दिले नादान था मर मिटने पर आमादा था

न कुछ कहती थी न सुनती थी
वो बड़ी खामोश सी रहती थी
उसकी खामोश भी कहती थी
की वो मेरे ख्यालों में रहती थी

उसे मुंडेर पे मेरी आहट का अंदाजा था
रब ने भी उसे मेरी चाहत से नावाज़ा था

थी ख़बर मुझे, मेरे ख़्वाब आते थे
उसे रातों से रह रह कर जगाते थे
ख़ामोश रात संग वह गुनगुनाती थी
आंखों ही आंखों में कह जाती थी

वो रहेगी सदा दिल मे ख़ुद से वादा सा था
बिन बंधे किसी डोर मोहब्बत का इरादा था

तन्हाइयों में मेरा नाम लिख कर
आंख चुराती थी वह शर्मा कर
कांपते हाथों से जब सरक कर
गिर जाती थी कलम फ़र्श पर

मुझे उसकी निकलती आह का अंदाजा था
मेरा नाम पूरा न हो पाने का दर्द ज्यादा था

आँचल की चुन्नी में था एहसास मेरा
दिलों की दुनियां में चाहत का पहरा
बिन साथ एक ख्वाब सजाती थी वो
अनूठे बंधन की कसमें निभाती थी वो

न जुड़ के भी एक रिश्ता  इल्हादा सा था
वो रहेगी सदा दिल मे ख़ुद से वादा सा था

तुम नहीं आओगे

वक्त है पर तुम नहीं आओगे
ऐ पटाखें तुम बहुत याद आओगे
माना तुम संग हमने ख़ुशी बाटी थी
पर सच तो यह है कि अति काटी थी
हर साल बाद तेरे सांस लेना दुश्वार था
ये दिल इस बार भी इस पर तैयार था
क्या पता था क़ानून ही ले आओगे
एन दिवाली इस तरह बैन हो जाओगे
मेरे लाल गोपाल से मुझे प्यार था
वहीं तुझे पा कर हुआ बीमार था
एक रात की खुशी और तुम फुर्र हो गए
निशां छोड़, तुम बीमारियों का घर हो गए
अब अदालती फैसलो में कैद हो जाओगे
फिर राजनीति को भी एक मुद्दा दे जाओगे
मुझे पता है फिर भी तुम नहीं आओगे
पर ऐ मेरे पटाख़े तुम बहुत याद आओगे।

ग़फ़लत

यू तो तमाम साथ है मेरे
नहीं पता कितनों के साथ मैं हकीक़त में हूँ।
एक हुजूम रहा है इर्दगिर्द
जानें कितनें अपने कितने पराये ग़फ़लत में हूँ।
मशरूफ़ रहने की जद्दो जहद
हैं रफ़्तार सी जिंदगी और मैं  बड़ी फुर्सत में हूँ।
किसी की हैसियत से क्या
काबिलतयत रख ताख उन्हीं की ख़िदमद में हूँ।
जिन्हें सलीका न था दोस्तों
वहीं पैगंबर बन बैठें  मैं देख के बड़ी हैरत में हूँ।
जब हमाँम में हुये सब नंगे
न गैरतमंद जमाना न मैं ही असल ग़ैरत में हूँ।

लिखना है....

लिखना है,
बहुत कुछ लिखना है......

नॉकरी की अंतहीन कतारों का इंतजार
अस्पताल के बाहर तड़पता हुआ बीमार
धर्म शास्त्र के नाम पर ठग्गुओं का बाज़ार
आश्रमो की कालिख़ दरगाहों का दुराचार
देशप्रेम के नाम पर प्रायोजित राजनैतिक व्यापार
निहत्थों पर आतंकी हमलों का हाहाकार
सैनिकों की शहीदी, बंधे आदेशों के तार
पंचायत के फैसलों का तालिबानी आकार
दिशाहीन पीढ़ी जनता के छीनते अधिकार
नेत्रत्व करते चोर बदमाश घुस आए घर द्वार
जनता को पालतू बनाने का हो रहा कार्य
लिखना है...
बहुत कुछ लिखना है....

माँ हर हाल उभारती है।

मैं जब हारता हूँ
वो मुझे जिताती हैं
मेरीे ताकत बन
वो मुझे उभारती है
थकते हर पल में
माँ स्मरण स्फूर्ति है
भय निंद्रा विकल में
माँ मेरी जागृति है
खोई चैतन्यता को
एक वो ही जगाती है
मैं जब हारता हूँ
माँ मुझे जिताती हैं
एक वो ही है जो
मुझसे अधिक मुझे जानती है।
मेरी कमजोरियों को
बारीकी से पहचानती है।
और तराश कर मुझे
माँ हर हाल उभारती है।

प्रिय तुम

प्रिय तुम
सांझ सिंदूरी
समा गयी
मेरी अँजुरी
अनल त्याग
शीतल सुनहरी
हुआ आगमन
गयी दुपहरी
खग विहग की
चहक सुरी
लौटे पंछी
अपनी नगरी
तुम संदेश लिए
विश्राम भरी
व्याकुल शिशु
धूप थी प्रहरी
तुम आयी
शीतलता ठहरी
क्रीडामय हो
खुली शिशु गठरी
नेह निहारे
डगरी डगरी
तुम से ही है
मिलन घड़ी
हर आँगन की
तुम आस बड़ी
जगमग प्रभास
लालिमा भरी
ऐसी प्रिय तुम
सांझ सिंदूरी
समा गई
मेरी अँजुरी।

सूरवीर

सभी साथियों को नए साल की हार्दिक मंगलकामनाएं, ईश्वर आपके सपनों को साकार करे....

रक्त बहा के रचा इतिहास
बेदी पर जब उखड़ी साँस
सूरवीर के अमर बलिदान
से पाया निज जीवन दान
नववर्ष प्रभात की नई किरण
देने सहर्ष स्वीकारी जिनने रण
अपने परिवारों के अंधियारे से
जो दे गए संदेशे उजियारों के
वीरों की वधुओं की सूनी मांगे
शिशुओं के अरमानो को लांघे
मातपिता को पीछे रोता छोड़
देश के खातिर हर बंधन तोड़
प्राणों को आहूति स्वीकार
और दे गए नूतनवर्ष उपहार
उन वीर जवानों को नमन करे
अर्पित नवदिवस की किरण करे
सुरक्षित खुली आज़ाद हवा
जिनके दम से जीवन प्रवाह
वे मातृभूमि के सच्चे साथ
सब क्यों न हो उनके कृतार्थ
सर्वप्रथम हम करें उन्हें याद
जो रक्त बहा रचा गए इतिहास

सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

बदलते रिश्तें

यह गैरों की हैं महफ़िल
यहां न कोई अपना हैं
दिल को घात हैं हासिल
बिखरता सबका सपना हैं
जिनके साथ पे इतराया
असल दुश्मन वहीं निकले
अरे षडयंत्र की महामाया
फ़तेह हौसले हार के क़िले
तड़प पुरानी याद के चलते
बदली समय की करवटे
कल तलक दोस्त थे लगते
आज कुछ मुखिया बन बैठें
अब सत्ता के सौदायी हैं
जो जन आवाज़ होते थे
भविष्य न दामिनी देखें
जो उसकी पीढ़ा पे रोते थे
भृष्टाचार जन लोकपाल
बदलने जो चले थे तंत्र
लगा ली खुद ग़लत चौपाल
भृष्टता अब उन्हीं का मंत्र
बुझे विश्वास का विश्वास
यह विश्वास है किस क़ाबिल
कहाँ वह अपने साथी है
यह तो निरे गैरों की है महफ़िल

यादें

नन्ही सी आशाओं वालें
वो सपने बड़े सुनहरे थे।
याद आएं वो रिश्तें नाते
जो सागर जैसे गहरे थे।

समय

न हम ही ज़रूरतमंद थे
न था जमाना मोहताजों का
जब जेब नहीं थी दौलतमंद
तब था बयाना अल्फ़ाज़ो का
अब सबके ख़जाने भरे हुए
पर वक्त नहीं अनाजों का
मिल कर भी मुँह फ़ेर रहे
यह जहां हुआ लफ़्फ़ाज़ों का
रिश्तों की डोरी उलझ रही
तालमेल न रहा मिज़ाजो का
आंखों में आंखों पढ़ लेते थे
उन्हें असर नहीं आवाज़ो का
अब जब सब जरूरतमंद है
समय मयस्सर दगाबाज़ों का।।।।।

यह दूरियां

यह दूरियां जाने कब कैसे आ गयी
दिल-ए डोर कब जड़ो से मिटा गयी
एक माँ बाप के जने बेगाने हो गए
सुख दुःख बयां किये जमाने हो गए
क्यों हुआ यह मेरा घर यह तेरा घर
बचपन का पकड़ मिटा गयी उमर
दिल कहे मुझे मेरा बचपन मिला दो
अधिकार जिसपे वह भाई लौटा दो
वो मुझे निःसंकोच जब चाहे पुकारें
मैं भी एक आवाज पहँचु उसके द्वारे
कोई ओपचारिकता न हो बीच ह्महारे
जो माँ बाप की तरह है जान से प्यारे
तमाम जरूरतें जिम्दारी उम्र के चलते
गुमशुदा न हो जाये कहीं खून के रिश्तें
ईश्वर बिन बनाये जो बन गयी है दूरी
मिटा कर वह दूरी करो चाहत पूरी
यह दिल की कशिश जुबाँ पे आ गयी
की ये दूरियां जाने कब कैसे आ गयी

सोच

संकुचित बातें ओछी सोच
की धूल जमी तू उसको पोछ।
जर्जर कर दे जो संबंधों को
नाते रिश्ते और अनुबंधों को।
यू अहम की बेड़ी क्यू बांधे है
चंद बीती बातें मन में साधे है।
चिर जीर्ण शीर्ण को ध्वस्त करो
मन पावन पुनीत का भाव भरो।
रिश्तें नातें ही अमोल धरोहर
ये जीवन को देते नूतन बल।
संगत अपनो की अमूल्य सदा
हो जाती विसंगति यदा कदा।
तो पुनः प्राणों का आवेग भरो
अंतर मन से कुंठित ताप हरो।
सोच की हाबी दुर्बलता पर
मनन चिंतन कर प्रहार करो।
रिश्ते है तो जीवन आमोद
इन बंधन से ही मिले प्रमोद।
तो संकुचित बातें ओछी सोच
की धूल जमी तू उसको पोछ।

कल

कल पे लिखें, पर कैसे लिखे
कल का क्या है ठौर ठिकाना
जीवन हर पल भूलभूलइया
अगला छण  किसने जाना
असंख्य रंग बसे आंखों में
कल के सपनों की पाँखों में
जाने क्या क्या रचने की ठानी
संग सपनों की दुनियां अंजानी
हम सब दौड़ रहे इधर उधर
लेकर लक्ष्यों का तानाबाना
पर जीवन तो है भूलभुलैया
कब किसने अगला छन जाना
हर हाथ लगे जो कल चाहे
बस में किसके, है आना जाना
तो कल पे लिखें, कैसे लिखे
कल का क्या है ठौर ठिकाना

अजन्मी बेटी

कितना अच्छा होता कि कोख़ में रह जाती।
माँ इसी बहाने मैं भी यह जिंदगी जी जाती।
बाबा आहत न होते यह जान की मैं आई हूं।
मुझे मिटाते, मैं लाँडो, लाड़ले के आगे पराई हूँ।
स्त्रीत्व देह की गति, संरचना से पूर्व समझ पाती।
ईश्वर से कर विनती माँ मैं तेरी कोख़ में न आती।
अब आ ही गयी तो अजन्मी तेरी बेटी तुझे मनाती।
दे कुछ और वक्त की मैं तेरी कोख़ में ही रह जाती।

धर्म

हर धर्म यही है कहता
हम आपस मे भाई भाई
किस बात की है नफ़रत
किस बात की है लड़ाई
किस ग्रन्थ कुरान बाईबल
से यह सीख तुमने पाई
मज़हब नहीं सिखाता
आपस मे रखों खाई
हर धर्म यही है कहता
हम आपस मे भाई भाई
खेलों न खून की होली
इसमें तो है सिर्फ बुराई
बच्चें हो चाहें किसी के
सब में ईश्वर की है परछाई
कत्ल करके उनके परिजन
तुमने तोहमतें उनकी पाई
जिस जन्मभूमि पर जन्मे
उसकी आत्मा दुःखाई
है सबको ख़ुदा का वास्ता
बंद कर दो  ये लड़ाई
क्योंकि....
हर धर्म यही है कहता
हम आपस मे भाई भाई
फिर किस बात की है नफ़रत
किस बात की है लड़ाई

तुम्हारे साथ

खुशियों के पल तुम्हारे साथ
लो फिर आई मिलन वर्षगांठ
शुभकामनाओं संदेशों का दिन
स्वीकारू न होता तुम्हारे बिन
यह जीवन यह खुशी तुमसे है
या यूँ कहूँ एक सूत्र बंधे तब से है
सभी के प्यार आशीष भरा दिन
पुनः स्वीकारू न होता तुम्हारे बिन।।।।।।।

ममतामयी

हो कौशल्या या हो कैकेयी
हर स्वरूप में माँ ममतामयी
पुत्रहित वो सीमाएं लांघ गयी
भेजा वन राम संग वैदेयी
युगों युगों की ताड़ना सही
पुत्रमोह क्या से क्या बन गयी
थी माँ प्रीपुत्र भरत की स्नेही
निहित भरत की माँ सह्रदयी
माँ हर स्वरूप ममतामयी
हो कौशल्या या हो कैकेयी

माता पिता

"Happy Father's Day"

सच में वे ही असल संबल है
शक्ति वे ही जीवन का बल है
पिता से ही अटूट तो सहारा है
वे कर्तव्य समर्पित ध्रुव तारा है
स्नेह दुलार की मौन अभिव्यक्ति
माँ में ममता तो वो छुपी शक्ति
नन्ही उंगली से निर्माण तलक
जो साथ न छोड़े एक झलक
वह पिता ही जीवन पालक है
अनुशासित अंनत सुखदायक है
कभी मिष्टी तो कभी तीखे तीखे
पर उनसे ही तो हम जीना सीखे
पिता चरित्र व्यक्तिव की नींव है
उनसे ही यह अस्तित्व सजीव है
करते नन्ही आंखों के सपने साकार
होकर समर्पित जो देते जीवन आकार
सहते जीवन की दौड़ धूप और थकान
पिता ही है रोटी कपड़ा और मकान
जो हर जरूरत पूरी करते जाते
जो पुत्र विजय पर खुशी मनाते
कभी धौंस से कभी सहज बन
बस एक उद्देश्य बच्चों का जीवन
चिंताओं से मातपिता ही देते मुक्ति
माँ की ममता और पिता की शक्ति
सच मे वे ही असल सम्बल है
मेरे मात पिता ही मेरा बल है

माँ

मिट्टी को स्वरूप दे जो एक मुकाम देती
जीवन वार जो अपना सुबह और शाम देती
वह माँ ही है जो जीवन की घनी धूप में
अपने शीतल आँचल में ममता भरी छांव देती है
दुनिया की कठिन डगर वह सार्थक अंजाम देती है
माँ ही है अटूट ताकत भरा पिता  ईनाम देती है
दोनो की उंगलिया पकड़ अपने पैर खड़े हो गए हम
आज कहते उनसे आप क्या समझेंगे बड़े हो गये हम
भूल गए जो हमहारे सपने सजा मुकाम देते है
घुटने पर रेंगते बच्चे को जो अपना नाम देते है
ओलाद की खुशी में ही अपना सामदाम देते है
अंततः उन्हें ही हम नासमझ का तगमा इनाम देते है

यू ही नाही

यू ही नहीं मुस्करा रहा हूँ मैं
फुर्सत के कुछ पल चूरा हूँ मैं
यह इत्मिनान कहाँ मिलता है
मिल गया..
तो ख़ुदा का शुक्राना बनता है
वक्त की मौजें उठा रहा हूँ मैं
मिले फुर्सत के पल मुस्करा रहा हूँ मैं

दौलत का गुरुर

दौलत का ग़ुरूर इतना कि छोटा आसमान कर दिया
अपने ग़ुरूर में इतने की हमने ने ऐलान कर दिया।
हर किसी का वज़ूद रौंद ख़ुद को हुक्मरान कह दिया
धौसगर्दी के आगे ताल्लुक़ातों को बेजुबान कर दिया
और ये क्या.....
दौलत का ग़ुरूर इतना कि छोटा आसमान कर दिया
ये कैसा पड़ोस है जिसने पड़ोसी को परेशान कर दिया
मौहब्बतें जुदा ऐ मालिक कैसी जगह मकान कर दिया
भाई को भाई की नागवार जिद्द ज़िरह ने हैरान कर दिया
ज़रा सी बात पे खिंची तलवारे रिश्तों को अंजान कर दिया
वाह रे वाह
दौलत का ग़ुरूर इतना कि छोटा आसमान कर दिया

सपनों जैसे

सपनो जैसे निकलोगे
कब ऐसा मैने सोचा था
स्वपन पराये होते है
तुमको अपना सोचा था
आने की आहट थी
बने रेत पे पद चिन्ह तुम्हारे
एक लहर के आने से
मिटे गए अंदेशे सारे के सारे
जब जगी थी प्रथम आस
उस छन को मैने कोचा था
मन आवरण से तेरी
अंकित तस्वीर को पोछा था
स्वप्न तो झूठे होते है
सच होंगे नाहक ही सोचा था
सपनो जैसे निकलोगे
कब ऐसा मैने सोचा था

पावन नदी

निर्मल बहती कलकल का मधुर संगीत सुनाती
वर्षा, हिम की बूंदों से मिलके अस्तित्व है पाती
गंगा जमुना सरस्वती ये पावन नदीयां कहलाती
जो सागर से आलिंगन कर वाष्प बन उड़ जाती
नील गगन में बदरा स्वरूप में सज सवर जाती
पुनः  मेघा बन फिर धरती पर जो बरस जाती
नदियां ही है अलख धरा का जीवन कहलाती।
बनो नदी सा निर्मल पावन ये हरित धरा बनाती
सदियों से जो जन जीव जंतु की प्यास बुझाती
 बूंदों से मेघा तक के जीवन चक्र का सबक बताती
और सदा सदा.....
निर्मल बहती कलकल का है मधुर संगीत सुनाती                                                     🙏शुभ रात्रि🙏

युग कवि गोपाल दास नीरज

कारवां गुजर गयाः कवि, गीतकार पद्मभूषण गोपालदास सक्सेना "नीरज" का आज आकस्मिक निधन हो गया। महान कवि गीतकार को शत शत नमन।
देश की कई पीढ़ियों के दिल की आवाज़ को गुनगुनाहट में बदलने वाले नीरज जी कारवां लेकर आगे बढ़ गए लेकिन उनका गुबार सदियों तक कायम रहेगा।

काव्य जगत की शिला लेख
विशिष्ट सृजन की देख रेख
हिन्द काव्य को दिया स्वरूप
जो भी लिखा रहा सदा अनूप
हिंदी की वीणा को शत शत प्रणाम
गोपाल दास नीरज अमर काव्य के सिद्ध नाम
सदियों तक अपने गीतों से गाये जाएंगे
जहाँ सजेगी काव्य गोष्टी आदरणीय याद आएंगे

मेरी स्वपन प्रेयसी

मन मस्तिष्क तुम रची बसी
आ जाओ मेरी स्वप्न प्रेयसी
देखों बारिश की बूंदे बरसी
दर्श को तेरे अंखिया तरसी
ऋतु सावन का प्रथम चरण
स्वीकार करों स्नेह निमंत्रण
रिमझिम सी तुम आ जाओ
तन मन व्याकुल छा जाओ
प्रिय पाहून मैं करू प्रतीक्षा
कब पूरन होगी मन की इच्छा
मैं धरा की प्यासी माटी सा
तेरी चाहत में तरसा तरसा
तुम घन छुपे चंद्र सी लुप्त लुप्त
प्रिय तुम बिन मन छुब्ध छुब्ध
मन मीत मेरी तुम स्वप्न प्रेयसी
तुम जीवन की हर्षित ऋतू सी
प्री बरस जाओ मेघ मिलन सी
तेरी राह में यह अखियाँ तरसी
प्रिय प्रेम ब्यार की बारिश बरसी
आ भी जाओ मेरी स्वप्न प्रेयसी
सुन बुहार अब आ भी जाओ ..
आ भी जाओ प्रिय प्रेम प्रेयसी
तुम आस मेरे तृषित जीवन की
तुम रिमझिम रिमझिम बारिश सी।

नारी

सदियों से श्रंगार हो तुम
रण में चंडी अंगार हो तुम
जननी बन रचती जीवन
लक्ष्मी बन सजती आंगन
प्रिय प्रियतमा संगनी तुम
स्नेह निछावर भगनी तुम
तुम चंचल बेटी स्वाभिमान
मार्त शक्ति की हो पहचान
अबला सबला सर्वविद्धमान
हर परिस्थिति लेती संज्ञान
जीवनदायनी आभार हो तुम
प्रेम प्रणय स्नेह दुलार हो तुम
संबंधों की तुम मन मोहिनी
कभी तुम दुर्गा रूप विनाशनी
तुम चंडी बन हर लेती रण
जब ले लेती संघार का प्रण
रिश्तों की निःस्वार्थ समर्पण
सब का सब, सब पर अर्पण
खुशियां तीज त्योहार हो तुम
प्रत्येक स्वरूप प्यार हो तुम
हे नारी....
सदियों से श्रंगार हो तुम
रण में चंडी अंगार हो तुम

रिश्तों की डोर

रिश्तों की डोर महीन है कहीं टूट न जाये
थाम लो अपनों के हाथ कहीं छूट न जाये
अहम कैसा की अपनो में दीवार बना दे
बीते खट्टे मीठे वक्त की हर याद भुला दे
अकेले जी कर जिया नही जाएगा
अपना अपना ही है याद ही आएगा
छणिक रोष में रिश्तों की निधि लूट न जाये
धैर्य ढांढस हो कि हर नाते एकजुट हो जाये
रिश्तों की डोर महीन है कहीं टूट न जाये
थाम लो अपनों के हाथ कहीं छूट न जाये

गरीब भीख मांगते नन्हे की आस

काश कोई मिले और कहे मैं तुम्हारा हूँ।
थाम के हाथ कहे धरों धीर मैं सहारा हूँ।
कंक्रीट के जंगल और मुँह फेरती भीड़ में।
कोई साथ हो खड़ा इस भीड़ को चीर के।
और कहे तेरे मिज़ाज का हर रुख़ ग़वारा है।
जो हो जैसे हो तू मुझे हर हाल में प्यारा है
मेरे फैले हाथ को समेट कर बाहों में भर ले
टटोलती निगाहों को जो उम्मीद में बदल दे
बड़ी बेवजह बेचारगी भरी जिंदगी का मारा हूँ
पानी की पहुँच से दूर मैं नदी का वो किनारा हूँ
जो आस लिए सोचता....
काश कोई मिले और कहे मैं तुम्हारा हूँ।
थाम ले हाथ और कहे धरों धीर मैं सहारा हूँ।

दो लाइनें यू हीं

कल तलक थे जेल में आज संसद के द्वार खुल गए
जीत कर रुतबा मिला और सारे दोष धूल गए
ये राजनीति की गलियां जहाँ चोर सिपाही सब मिल गए

बरस अब की बरस मेघा जरा जोर से
बह जाए द्वेष घृणा क्लेश चहु ओर से

फुहार है या प्यार है?                       
जब जिंदगी की तपिश जला रही थी मुझे
वह बारिश की बूंद बन भीगा रही थी मुझे

जो चाहूँ वह मिल जाएगा
कोई भी पल डरा न पायेगा
सच ही हर बच्चे की सोच है
पिता है तो जग जीत जाएगा

दुनियां सच कहती है
मिलेगा वही जो किस्मत में होगा तेरी
आज़माया तो सच पाया
तभी तो.. किस्मत से मिली हैं माँ मेरी


कारगिल विजय

आओ मिलके नमन करें उन्हें जो डिगे नहीं अंत छणों में।
एक के बदले दस का संघार कर जो मिट गए रणों में।
वो वीर शहीद अमर हो सज गए माँ भारती के चरणों मे।
सदा रहेगी संचित वीर स्मृति मातृभूमि के पवित्र कणों में।
मर मिटने का जज़्बा जोड़ गए नवयुवा पीढ़ी की जड़ों में।
आओ मिलके नमन करें उन्हें जो डिगे नहीं अंत छणों में।

उम्र का पता नहीं

मायूसियों इतनी की सांसें भी ली जाती नही
ऐसा क्यों लगता है कि जिंदगी जी जाती नहीं

ढूंढ लो खुशियां वरना इस उम्र का पता नहीं
के मुस्कराने चले तो साँसों का अतापता नहीं

मैं हर हाल खुश मुझे जिंदगी से शिकवा नहीं
अपनों का साथ असल ख़ुदा की दुआ है यहीं

है तुम्हारा भी सकूँन पास क्यूँ नज़र जाती नहीं
तन्हा रहके सफ़र-ऐ जिंदगी बसर की जाती नहीं

हो मायूस अकेली जिंदगी तो जीयी जाती नहीं
थाम लो हाथ अपनों का, फिर घड़ी आती नही

पूजा इबादत

सज़दा करते है तो बेशक किया कीजिये
पूजा इबादत भी दिल खोल किया कीजिये
वैसे कट्टर होना तो कोई बुरी बात नहीं
कट्टरपंथी न हो ऐसी तो कोई जात नही
पर धर्म नफरतों की हद पार कराने लगे
एक दूसरे को जान का दुश्मन बनाने लगे
तो अपनी हरकतों पे ज़रा गौर कीजिए
ये धर्म मे कहा लिखा तहरीर तो दीजिये
धर्म की असल तारीफ़ इंसानियत है दोस्तों
हैवानियत धर्म नही जाहिलियत है दोस्तों
गौर से देखों तो ख़ुदा भगवान जीसस सभी
आंखों से नहीं बस महसूस किए जाते है सभी
नेक बन के उन्हें ख़ुद में ही तराश लीजिये
इंसानियत की राह सच्ची इबादत किया कीजिये
तलाश बेवजह की जबकी माँ बाप है सामने
कैसा भी हो वक्त जो खड़े होते हर हाल थामने
फिर इधर उधर न अधूरी तलाश किया कीजिये
वे ईश्वर है रूबरू उन्हें तस्लीम किया कीजिये
सज़दा करते है तो बेशक किया कीजिये
पूजा इबादत भी दिल खोल किया कीजिये

टुकड़ियां

न बने सिख ईसाई हिन्दू क्या मुसलमान
बेहतर होगा कि बन जाएं हम नेक इंसान

झूठी प्रशंसा किजिये जो सबका मन ले मोहे
सच रखा जो सामने तुझसे बुरा न कोये

धन संपदा साथ तो बहुतेरे है साथ
एक अकेली रह गयी निर्धनता खाली हाथ
धनी जन के चोचले सबके सब सर माथ
धिक्कार हाथ आएगी जो गरीब जन्मजात

न समझ की जिंदगी को लेकर तेरे पास ही शिकायतों की छिटांकसी है
शिकायतें तो हजार उनके पास भी जिन्हें जिंदगी ने हर खुशी बक्शी हैं।
धन संपदा साथ तो बहुतेरे है साथ
एक अकेली रह गयी निर्धनता खाली हाथ
धनी जन के चोचले सबके सब सर माथ
धिक्कार हाथ आएगी जो गरीब जन्मजात

झूठी प्रशंसा किजिये जो सबका मन ले मोहे
सच रखा जो सामने तुझसे बुरा न कोये

समय बड़ा अनमोल

दिन न जाये आरे बारे रात न काली कीजिये
समय बड़ा अनमोल हर छण संचित कीजिये
आपस मे हो प्रेम भाव, द्वेष राग तज दीजिये
जीवन डगर जीवंत होये कारज ऐसे कीजिये
जो मिला जैसा मिला सब ईश्वर की महिमा है
आपन कैसे भोग रहे ये अंतर्मन की गरिमा है
क्यों राग अलापे भाग्य का, कर्म ही प्रधान है
जीत हार दो पहलू है नहीं विधि का विधान है
दोनों से ही सबक मिले अनुभव इनसे लीजिये
जो जन के लाभप्रद वह सबसे साझा कीजिये
दिन न जाये आरे बारे रात न काली कीजिये
समय बड़ा अनमोल हर छण संचित कीजिये

कौन हैं जो..

कौन है जो....
ध्वल चांदनी सी मन व्योम में जो छा गयी
मेरे सूने जीवन को प्रसून देह से महका गयी
अपूर्व निराला एहसास उसका
सुखद निर्मल वो हिमकर छटा
उरमोहनी सी वह कनक कांता
मरु धरा भिगो गई हो अर्कजा
कौन है जो....
सुखद आमोद बन जीवन डगर आ गयी
मेरे सूने जीवन को प्रसून देह से महका गयी
मौन जीवन में मधुर संगीत से
घोल गयी मधु स्नेही प्रीत से
अनुग्रहित मन, मन के मीत से
आंनद प्रेम की पावन जीत से
कौन है जो....
संग प्रणय अनुराग हर्ष उत्सव मना गयी
मेरे सूने जीवन को प्रसून देह से महका गयी
तन मन की वो अनूठी चेतना
प्रिय अगम से मिटा तम घना
हुआ प्रफ़ुल्लित मन अनमना
पा कर लगा हुई पूर्ण कामना
कौन है जो....
मेरे अंतकरण में नवजीवन जोश जगा गयी
मेरे सूने जीवन को प्रसून देह से महका गयी

यू हीं लिखते लिखते

दुश्वारियों से नहीं ज़माने की मौज़ से है परेशान
कल सवारने की फिक्र ऐसी की अपने आज से है अंजान
सच कहूँ तो जीने के लिए हर पल मर रहा है इंसान

क्या कहूँ..अक्सर मैं चूक जाता हूँ
हाँ हाँ नहीं कर सका और चाटुकारों की फौज है
इसी लिए मैं चूक जाता हूँ

करें नियंत्रण भाषा पे जो सबके मन भाय
मीठी वाणी बोलियें जो जग प्रेमी हो जाय

तुम ही याद आये

हाँ तुम ही बस तुम ही याद आये......
मुझे रात के हर पहर तुम ही तुम  याद आयें
चमकते चाँद की ओट जब तारे टीमटिमायें
लगा जैसे हो तुम्हारा आँचल मन मेरा चुराए
रजनीगंधा महक लिये पवन के झोकें आयें
ये एहसास था तुम्हारा चाह प्यार की जगाये
न नींद न चैन, मुझे हुआ क्या कोई तो बताये
तुम्हारी प्रतिपल कामना में इच्छित मेरी बाहें
करवटें बदलती घड़िया पूछती क्यूँ नही आये
मुझे दिन क्या हर पहर बस तुम ही याद आये
हाँ तुम ही बस तुम ही याद आये......

चाहत और उमंग

चाहत और उमंग सजे
आएंगे पल जीवन में
एक दिन आएगा जब
गीत सजेंगे तेरे होठ पे
प्रेम महकते पुष्प पलाश
तेरी बगियां में महकेंगे
जगती आँखों मे तेरे
मेरी प्रीत के स्वप्न सजेंगे
कब तक आह नकारोगी
इक दिन दिल से स्वीकारोगी
यह आस नहीं है विश्वास
जब दिल से मुझे पुकारोगी
प्रिय प्रेम मिलन की चाहत
जागेगी तेरे तन मन में
चाहत और उमंग सजे
आएंगे वह पल जीवन में

राहत वाले दिन

जो पिछले दिनों का घाव भरें
मरहम सी राहत वाला दिन
बीत जाए दिन बदहाली के
और आये दिन खुशहाली के
इसी सोच में बीते दिन
दिन आएगा एक दिन
जब हर दिन मनचाहा होगा
उस दिन की करू प्रतीक्षा
जब यह दिन बीतेंगे
और आएंगे अच्छे दिन
दिन भर की भाग दौड़
बाद बचे दिन में हो सुकून
कब आएंगे ऐसा दिन
दिन गिनने की उम्र से पहले
जी भर जी जाने वाला दिन
जो पिछले दिनों का घाव भरें
मरहम सी राहत वाले दिन
कब आएगा ऐसे दिन
तंगहाली के बीते दिन से
निजात दिलाने वाले दिन
सहमे डरे घबराए दिन से
कब निश्चिन्ति होंगे अपने दिन
खोये खोये सोच में डूबे
असफल और अशांत से दिन
कब जोश होश में होंगे दिन
विश्वास जगाने वाले दिन
आएंगे या रह जाएंगे
मेरे तेरे हम सबके दिन
जो पिछले दिनों का घाव भरें
मरहम सी राहत वाले दिन

भिखारी

जन्म लेते ही हुए भिखारी
दबी लालसा उदित लाचारी
क्यों बच्चें नहीं भिखारी हम
पाले भाग्य लकीरों में मातम
भिखारी नही हम बच्चे होते
काश हम भी बच्चे होते
किलकारी के धोतक होते
कभी रूठते कभी रोते
लुका छिपी खेल खेलते
मोहित हो सब हम्हे देखते
हट करते कभी आपा खोते
बच्चों जैसे नख़रे होते
भिखारी नही हम बच्चे होते
काश हम भी बच्चें होते
लोग फैले हाथों पैसा न देते
आगे बढ़ बाहों में भर लेते
माँ के आँचल निश्चिन्त सोते
जीवन बदबत्तर सा न ढोते
भीख भिखारी और हिक़ारत
बचपन मे ही जर्जर इमारत
कुछ हाथ नहीं जिसको खो दे
किसके आगे दर्द यह रो दे
उम्मीदों के कुछ सपने होते
काश हम भी
हाँ हम भी बच्चें होते

कमींन किरदार

बंटवारे की आग में कितनों का संघार हुआ
वर्षो के विश्वास का रिश्ता तार तार हुआ
देश बांटने के खातिर एक तबका गद्दार हुआ
अपनो की भीड़ में जिन्ना सा कमीन किरदार हुआ
चरखे से आजादी इसका तो खूब प्रचार हुआ
आजादी में गांधी नहेरु का जिक्र तो बारंबार हुआ
नेता जी भगत चंद्रशेखर इनका विलुप्त आकार हुआ
आजादी का सहेरा भी एक ही के सरमाथ हुआ
वीरों के बलिदानों से ये इतिहास अज्ञात हुआ
गांधी नहेरु जपते जपते बाक़ी को बिसार दिया
आज़ादी में क्या केवल दोनों ने ही उद्धार किया
अशफ़ाक सुखदेव राजगुरु का किसने नाम लिया
बाक़ी शहीदों की कुर्बानी को क्यों निराधार किया
आज़ाद हवा में खुलीं साँस मिली जिस अवशेष से
उन वीरों के परिवारों को क्या मिला इस देश से
आओ पुराने पन्नो को पलटे और उनको भी याद करें
विशिष्ट रिक्त स्थानों में चलों उन वीरों का नाम भरें

ऐ मेरे वतन

ए मेरे वतन के लोगो फिर से वह नज़ारा याद करों
जरा वीरों के ह्रदय की ज्वाला का तेजस्वी भाव भरों
जिन के शोलो में जलके परतंत्रता भी खाख हुई
सौर्यवीर शहीदों को पा धरती माँ बाग बाग हुई
मत पूछों क्या क्या न खो कर आई है स्वतंत्रता
चरखे अहिंसा दांडी से मात्र नहीं पाई है स्वतंत्रता
अनगिनत कुर्बानीयों के बाद कमाई है स्वतंत्रता
वीरों ने अपने जिंदगी के बदले कमाई है स्वतंत्रता
जिन्ना दल गद्दार था जिसने सरहद पर रेखा खिंची थी
बिसार दिया कि वीरों ने आजादी अपने लहू से सींची थी

बैरी जीवन

बैरी जीवन को जीने की यह होड़  कैसी
जो अनिश्चित अंतहीन रास्तों के मोड़ जैसी
व्याकुल हो कर के क्यो यह  मन घबराता है
जिसपे जोर नहीं अपना नाहक जोर अजमाता है
दर्द की उम्र क्यूँ बढ़ाएं मन के धरातल पर
अडिग हो डिगा रहे आत्मआस की डगर पर
कल का भय लिए क्यों आज को गवाता है
चुनौतियों से निखर ही जीवन बल पाता है
भाग्य करें न बैठे बैठे किया हुआ ही पाता है
सरस कहाँ जीवन क्यों सत्य से कतराता है
जिसपे जोर नहीं अपना नाहक जोर अजमाता है

अटल

अपूर्णीय क्षति कवि हृदय , कुशल वक्ता और विद्वान जननायक को सादर श्रद्धांजलि

जो ठान ले वह ठान ले वो मन से अटल थे
वो व्यक्तिव से अटल न मात्र नाम से अटल थे
भावों को नित नए अनूठे काव्य में रचते थे
पक्ष क्या विपक्ष हर एक ह्रदय जो सजते थे
आलोचकों को भी स्नेह करें वह ऐसा महान थे
जनमानस के प्राण बसे नवज्ञान के अभियान थे
देश के पटल पर स्थापित जो नाम अमर अजेयी है
वह जन जन के प्रिय नेता अटल बाजपेयी है
बीत गया वो स्वर्गीय पर जो जीत गया वो अटल है
स्तंभ की भांति स्मृतियों में जीवंत रहेंगे वो प्रति पल है
हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा पक्तियों में अमर है
गीत नया गाता हूँ का जो निज जाग्रत सा स्वर है
जनमानस की प्रेरणा जो कल आज और कल थे
वो व्यक्तिव से अटल न मात्र नाम से अटल थे

दो लाइने

यह जिस्म यह जिंदगी तुम्हीं से पहचान पा रही हैं
यूँ रूठो न हमसे जानम, मेरी जान जा रही हैं

मिली दुनियां भर की दौलत जब फैलायी उसने बाहें
 सब कुछ बयां कर दे ऐसी दिले यार की निगाहें

माना मेरा वजूद तेरे दिल में न कल था न आज है
पर मेरे यकीं को है यक़ीन ये मेरे प्यार का आगाज है


नौजवानी

नौजवानी क्या हुई बेबफा हालात बदलते चले गए
बचपन के संगी साथी जाने कैसे बिछड़ते चले गए
अज़ब उम्र की राह पैदान दर पैदान चढ़ते चले गए
ज़ालिम रफ़्तार-ए जिंदगी और हम बढ़ते चले गए
संभाले न संभले रिश्तें हाथों से फिसलते चले गए
ख़बर भी न लगी कब दोस्तों से बिछड़ते चले गए
जिन के बिन कभी जीना भी था ब-बेहद मुश्किल
उन्हें निभाने में आया वक्त भी न हुआ क्यूँ आदिल
की खुशियों के वे पल तन्हाईयों में बदलते चले गए
रह गयी यादें पते दिलों दिमाख से फिसलते चले गए
नौजवानी क्या हुई बेबफा हालात बदलते चले गए
बचपन के संगी साथी जाने कैसे बिछड़ते चले गए

कुछ यूं ही।

मुझे अपनी मर्जी से जीने की आदत थी
एक ओर जिंदगी एक ओर मोहब्बत थी
इश्कदरिया की बेरहम सी फितरत थी
दीवाने को  हरहाल डुबाने की कूबत थी

सब कुछ लूट लेती है ये समंदर सी आँखे
जिन्हें जिंदगी न हो  प्यारी वहीं इनमें झाखें


भाई नही पर भाई के संसार जैसे
बचपने से जवानी तक प्यार जैसे
रूठने मनाने कभी तकरार जैसे
रिश्तें नहीं मिलते दोस्त यार जैसे

भरी जेब तो यार दोस्त रिश्ते नाते की सभी की ठौर है
असलियत से रूबरू तब जब हमनवा मुफ़लिस-ए दौर है

अक्सर ही मुझे वह गली मुहल्ला शहर याद आता हैं
महल सा आलीशान न था पर मुझे मेरा घर याद आता है


किताब

अनपढ़े हर्फ़ों की किताब है
जिन्दगी बड़ी ही बेहिसाब हैं
बनते कभी बिखरते ख्वाब है
हारी बाज़ी कभी ख़िताब है
कभी स्याह कभी आफ़ताब है
आज हवाएं रुख ख़िलाफ़ है
तो कल महकता गुलाब है
मातहत तो कभी अश्फ़ाक है
जिंदगी का अज़ब ही रुआब है
दवा यही और यही तेज़ाब है
जानें कब बदरंग कब शबाब है
गम ख़ुशी की यही अस्बाब है
सुलझाए न सुलझे बेज़बाब हैं
फ़िक्र कल की और जां बेताब है
कमबख्त....
यह जिन्दगी बड़ी बेहिसाब है
अनपढ़े हर्फ़ों की एक किताब है

एक अदा

तेरी नज़रंदाज़ीयो को भी हम एक अदा का नाम देते है
तेरे सितम के बदले हम तुझे दुआए सुबह शाम देते है
की तेरा हमसफ़र हमसाया हो जो तुझे दिलों जाँ से चाहें
दुआओं में असर होगा तो मुझे ही तलाशेंगी तेरी निगाहें
हैं यकीं की ये दुआए ये बंदगी भी एक दिन रंग लाएगी
मुहब्बत को परख तू ख़ुद बा-ख़ुद खिंची चली आएगी

हमनशीं

रौशन-ए आफ़ताब सी मेरी हमनशीं है
लज़ा के चाँद की नज़र भी झुकी झुकी है
उसकी की महक से फ़िज़ा बहकी बहकी है
सारे चमन के फूलों में घुली ख़ुश्बू उसकी है

मुश्किल हैं

गरीबी मिटना तो बेहद मुश्किल है
गरीब को मिटा देना ही अक़्ल है
रहीसी की नियत कब फ़ाज़िल है
नज़र ग़रीब मिटाने के काबिल है
लगते ये शानेशौकत के ख़लल है
मुश्किल हुआ बचाना ये जंगल है
बदलती सोच का गहरा चुंगल है
हुई जमीर बे-दाद अदल बदल है
पुख़्ता दौलत गुमां का दल दल है
वक्त कहा गरीबों का आदिल है
ये रहनुमा ढूढ़ते अज़ब पागल है
महलों में पलती सोच पल पल है
टाट के पैबंद से ये इसी काबिल है
बज़ाय ग़रीबी....
गरीब को मिटा देना ही अक़्ल है
क्योंकि गरीबी मिटना मुश्किल है

गरीब

गरीब रोये गरीबी पर
निःसहाय नितांत अकेला है
बेरहम महंगाई है जमकर
दुःखो का बड़ा झमेला है
सुख की बाट जोह जोह कर
मन घाव सहे बहुतेरा है
रोटी के खातिर लड़े लड़ाई
बस पापी पेट का फेरा है
पक्ष विपक्ष की कठपुतली
चुनाव तलक ही मेला है
हफ़्ते दो हफ़्ते हवा चली
फिर किसने इनको झेला है
धनाढ्य जगत में मुठ्ठी भर
और भूखें नंगो का मेला है
मज़दूर मज़दूरी के खातिर
धनी कहे तू मेरा हाँ तू मेरा है
काम ख़त्म और चलता होजा
किस्मत का लिखा तेरा है
भूखें जी या चिर निंद्रा सोजा
तेरे तो भाग्य अंधेरा है
नवजातों से बूढ़ी काया तक
एक ही सा दर्द झमेला है
की गरीब रोये गरीबी पर
निःसहाय नितांत अकेला है

मुस्कराना चाहता हूँ

तिज़ारत क्यों आँसुओ से मिल के मुस्कराना चाहता हूँ 
मैं दीवाना हूँ दीवानगी की हद से गुज़र जाना चाहता हूं
दो चार का साथ नहीं तहे-दिल ज़माना चाहता हूँ
मुहब्बत के खातिर मैं बीते हर रंज भुलाना चाहता है
मैं तेरे लिये तू मेरे लिए लाज़मी ये बताना चाहता हूँ
वज़ह जो दीवारों की वह हर ईट छुपाना चाहता हूँ
तिज़ारत क्यों आँसुओ से मिल के मुस्कराना चाहता हूँ 
जमीं पे अमन के कतरों से सजा समुंदर बहाना चाहता हूँ
मैं ज़माने भर को मुक़म्मल आशियाना बनाना चाहता हूँ
तमाम दूरियां को पाट कर मैं क़रीब आना चाहता हूँ
ख़ामोशियां बेहतर मैं बाग़ी आवाज दबाना चाहता हूँ
गुमां की दौलत आड़े उसे आज जलाना चाहता हूँ
रौशनी के ख़ातिर तुझे ख़ुद के करीब लाना चाहता हूँ
हाँ मैं दीवाना हूँ दीवानगी की हद से गुज़र जाना चाहता हूं
तिज़ारत क्यों आँसुओ से मिल के मुस्कराना चाहता हूँ

राजनीति चमकाना हैं

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सबको आपस मे लड़वाना है
फैला दो रायता फैला दो ग़र राजनीति चमकाना है
आरक्षण के पंचम से फिर इतिहास हमे दोहराना है
मंडल और कमंडल जैसा ब्रह्मास्त्र नहीं भुलाना है
जनता में हो बैर भाव बस मुद्दों से भटकाना है
फैला दो रायता फैला दो ग़र राजनीति चमकाना है
एक के मुख पर पप्पू सोहे दूजे ने चोर बुलाना है
स्तरहीन राजनीति का मिल कर पंचम हमे फैराना है
राजनीति की जीत हार से हमें जनता को हराना है
कोरे वादों की ठगी का भइया फंडा बड़ा पुराना है
बस घोटाले और महंगाई से इस जनता को दबाना है
फैला दो रायता फैला दो ग़र राजनीति चमकाना है
क्रिकेट खेल पाक के संग सम्बन्ध बने दिखलाना है
सीमाओं पर बलि का बकरा नित सेना को बनाना है
दिन बहुरेंगे जनता के बस यह सपना हमे दिखाना है
ट्रम्प कार्ड है मंदिर मस्जिद इसको सदा भुनाना है
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सबको आपस मे लड़वाना है
फैला दो रायता फैला दो ग़र राजनीति चमकाना है

भविष्य कल के

बच्चें भविष्य कल के होते पर दाग कहाँ से अच्छे है।
झोपड़पट्टी में पलने वाले हम मैलें कुचरे बच्चे हैं।
भूख़ ग़रीबी जन्मजात है जानें दिन कब यह उभरेंगे।
अंधकार में भविष्य हमारा देश का क्या हम बदलेंगे।
मेक इन इंडिया की नही समझ दिमाख से हम कच्चे है।
आज बदल रहा है देश हमारा यह गली गली में चर्चे है।
पर ज़मीनी हालात जस के तस कोरें वादों के लच्छे है।
भूख़ कुपोषण के बलि चढ़ते हालात हमारे सच्चे है।
क़िस्मत से हम लड़े लड़ाई सुख की राहों में गच्चे है
झोपड़पट्टी में पलने वाले हम मैलें कुचरे बच्चे हैं।

रिश्तें

सोचें रिश्तें न होते, न होता अपनों का साथ
न ललक जीने की होती, होता जीवन बेस्वाद
मातपिता भाई बहन बेटा बहु और बेटी दामाद
इस जीवन के सब रंग है दोस्त यार संग साथ
सबका सानिध्य मिलता रहे तो बने बात से बात
हँसते गाते कट जाएगी हर सुबह सांझ और रात
खट्टी मीठी तकरारें इनकी कम से कम हो मियांद
सारे रिश्तों सजोंइयें यह है जीवन की बुनियाद
जो बिछड़ गए राहों में वे आते हर पल याद
कल का तो कुछ पता नही क्यों पछताए बाद
दुविधाएं तो मिट सकती है यदि होता रहे संवाद
मिटे मिटायें ही मिटते है मन के हर अवसाद
अपने तो अपने होते है सुख दुख के संगी साथ
इंद्रधनुष रंगो जैसे यह रिश्तें जीवन का स्वाद
सोचें रिश्तें न होते, न होता अपनों का साथ
न ललक जीने की होती, होता जीवन बेस्वाद

जोर नहीं संघर्षो में

नित नई बाधाओं का साथ रहा है जीवन के संघर्षों में
पर अंतर्मन ने यही कहा है की तुम पहुँचोगे उत्कर्षो में
बस हार जीत के फेर न पड़  कर्म संजोओ आदर्शो में
प्रयास से कभी डिगे नहीं और निश्चय भाव बहे नसों में
और आत्मविश्वाश धैर्य की धारा बहती रहे नसों नसों में
तो सफलता अवश्य मिलेगी कोई जोर नही है संघर्षों में

उर्मिल की पीर

प्रिय इच्छा थी मैं भी संग आती
महलों के कंटक से बच जाती
एकाकी जीवन जीने से अच्छा
मैं हर छण साथ तुम्हारा पाती
प्रिय इच्छा थी मैं भी संग आती
तुम ने भ्रात प्रेम में सेवक बन
समय अर्पण का किया निवेदन
उस व्रत बाधा कैसे बन जाती
रघुकुल रीति मैं वचन निभाती
विरह स्वीकार मन ताप छुपाती
महलों में सन्यासिन का जीवन
तुम्हारे दायित्वबोध में मैं अर्पण
स्वीकारी निरी वियोग की थाती
सहर्ष पुत्रवधु का बोध निभाती
त्याग कर्तव्य के पथ हम दोनों
तुम्हे विवश हारता देख न पाती
अन्यथा...
प्रिय इच्छा थी मैं भी संग आती
महलों के कंटक से बच जाती
एकाकी जीवन जीने से अच्छा
मैं हर छण साथ तुम्हारा पाती

शहर छोटा सपने बड़े

दौड़ में आगे निकल जाना था
पाना था बहुत कुछ पाना था
शहर छोटा सपने बड़े बड़े थे
मंजिल पाने कुछ ऐसे अड़े थे
चाह में संजोयें एक बड़ा सपना
मैं छोड़ आया वह शहर अपना
बाहें फैलाये तरक्की का छद्माभास
बड़े शहर में सब पाने का एहसास
नित नई मंजिलों का आमंत्रण उदघोष
समीप आओ भर के उमंग नया जोश
चले आओ तुम्हारी मंजिले है यहाँ
रोटी कपड़ा मकान शान शौकत यहाँ
कदम भी बढ़े उस ओर जहाँ तरक्की थी
सच यहाँ दौलत शोहरत की पनचक्की थी
जो चाहा वह सब कुछ मिलता गया
चकाचोंध के बाजार में सकूँन बिकता गया
कदम तो बढ़े पर मन साथ न आया
मन की आंखों में अपनत्व का घना साया
वो छोटें शहर की यादों का बसा आया
अंजान बड़े शहर को न अपना पाया
मन उंगलियों को थामें छोटे शहर के यादें
कहती मुझे मेरे शहर की जिंदगी लौटा दें
मुझे रुसवा कर पाना भी क्या पाना है
जंगल सा शहर यहाँ हर शख्स अंजाना हैं
मन की चाह अपनी गालियां अपने लोग
वही सच्ची धन दौलत वैभव उपभोग
मन कहें लौटा दे नीरज मुझे लौटा दें
मुझे मेरे छोटें से शहर की मीठी यादें।

तेरी चाह

बीते इतने वर्षों में भी एक कोना आरक्षित है।
मुंदी चाहत की दीवारों में तेरी चाह जीवित है।
मेरे प्रेम आकर्षण की तुम ही प्रथम बिंदु थी ।
युवा उमंगित मन की तुम ही शीतल सिंधु थी।
तब चाह के कह न सका मन आज भी गर्वित है।
प्रथम प्रेम की परिभाषा तुमसे ही सुसज्जित है।
स्वपनों और विचारों में तुम आज भी आती हो।
जीवन के सूने छणों को रोमांचित कर जाती हो।
भान कहा गति मन की जो मन भीतर अंकित है।
ह्रदय तुझे दे बैठा था वह छन आज भी संचित है।
मुझे ज्ञात तुम भी मेरी चाहत से अनभिग्य न थी।
जता पाए एक दूजे को बस ऐसी हिम्मत न थी।
दोनों के मन पाने खोने का एहसास सुरक्षित है
जग ज़ाहिर हो न सका दोनों का ह्रदय परीक्षित है
बीते इतने वर्षों में भी एक कोना आरक्षित है।
मुंदी चाहत की दीवारों में तेरी चाह जीवित है।

जगमग दीये

आकाश के ज्योति पुंज को
ग्रहण कही लग न जाये
रश्मियों को सुला के कहीं
तम घना जग न जाये
आओ रौशनी के लिए
जलाए जगमग दीये प्रिय
आंधिया जब छलने लगे
शांत धरा के भू भाग को
चलो सुगमता के बांध से
रोक दें विचलित आवेग को
चंचल मस्त पवन लिए
गाये तरलता के गीत प्रिय
कंटक जहर निरा यहाँ
चलो अमृत लाये खोज कर
क्षितिज की छाती पे पुनः
खुशियों के बीज रोप कर
सुखमय फ़सल के लिए
करें प्रयास मिलके प्रिय
बैर भाव घृणा वेदना मिटा
प्रेम दया संवेदना उगें
सो गया अपनत्व धरा से
पुनः हरेक ह्रदय जगे
एकता की डोर के लिए
आओं जोड़े दिलों को प्रिय
आकाश के ज्योति पुंज को
ग्रहण कही लग न जाये
रश्मियों को सुला के कहीं
तम घना जग न जाये
आओ रौशनी के लिए
जलाए जगमग दीये प्रिय
निशा की दिशा काट कर
प्रातः की किरण जगमगाए
धरा पे गगन की ओट से
ध्वल धूप छन छन के आए
आओ नई सुबह के लिए
गाये ऊष्मा के गीत प्रिय
आलोकित रौशनी के लिए
जलाए जगमग दीये प्रिय

तुझ संग

जिस पल मैंने संग लिए थे तुझ संग अग्नि के फेरे
उस पल सपनों की बारात सजी थी अंतर्मन में मेरे
प्रिय तुमने मेरे कोरे जीवन में गीत रचे हैं बहुतेरे
खट्टी मीठी सी यादों के पल संवरें कुछ मेरे कुछ तेरे
मन रोमांचित कर जाते है जब जितना इन्हें उकेरे
जीवन के झंजावत में तुम रहती संग सांझ सबेरे
यू ही हँसते गाते कट जाएंगे सुख दुःख के हर फेरे
अरुणिमा बन एकाकी जीवन के तुमने हरे अंधेरे
जीवन संगनी बन मन मंदिर में सजी तुम धीरे धीरे
चंचल सरल सलोनी सी तुम जैसे माणिक मोती हीरे
सोचू तो तुम बिन लगते जीवन के सारे स्वपन अधूरे
अपरिचित रिश्तें के रंगों ने ही रिक्त चित्र किये थे पूरे
जिस पल मैंने संग लिए थे तुझ संग अग्नि के फेरे
उस पल सपनों की बारात सजी थी अंतर्मन में मेरे

आपकी दुआए

आपकी दुआएं साथ तो क्या करेंगी दुख दर्द विकलता
दुविधाओं का सीना चीर के मेरे कदम चूमेंगी सफलता
माना अग्निपथ यह जीवन डगर, हार नहीं पथ में मगर
विश्वास आस सब आशीष है जो जिताए मुझे हर पहर
कठिन समय की घड़ी को जो दें विश्ववास की सरलता
टूटे हुए पलों में भी पा जाता हूँ, नवसृजन की सबलता
जब सर पे हाथ आपका तो चुनौतियों का किसको डर
सर्वदा निर्रथक मुझ पर हार की आशंकाओं का असर
लाख राह की दुश्वारियाँ परन्तु अंत में मैं ही हूँ जीतता
क्योंकि.....
आपकी दुआएं साथ तो क्या करेगी दुःख दर्द विकलता

रावण

दशहरे के रावण को मार गिराया
भ्रष्टता के रावण का हो कैसे सफाया
बुझता रावण का जलता हुआ पुतला
राम की श्रेणी में भला कौन है बतला
धोखे और फरेबो पटी है यह दुनिया
घुसखोरो बैमानो चोरो की बतमीज़ियां
ये दंबग और धांधलेबाज प्रशासन
सियासत में पनपते कंस दुशासन
इन सबसे भला कब कौन बच पाया
इस युग में झूठ ने सच को हराया
दशहरे में काहे को पुटला जलाया
प्रश्न वही मन ने रह रह के दोहराया
की.....
क्यों दशहरे के रावण को मार गिराया
भ्रष्टता के रावण का हो कैसे सफाया

जेब है खाली

कहीं ग़रीबी कहीं बेकारी कहीं जेब हैं खाली
महँगाई की मार दुधारी फ़ीकी भई दिवाली
डीज़ल पेट्रोल से आई अज़ब गज़ब उछाली
भूखे पेट जीने को बेबस भये गयी आधी थाली
डॉलर युरो धौस जमाएं तो रुपये की बदहाली
धुंध धुंआ और धूल ने यह कैसी परत बना ली
दूभर जीना मानस का सेहत की हालत माली
कोरे वादे कोरी बातें, सत्ता स्वप्न दिखाए ख़्याली
जस के तस जनता की हालत, जुम्ले सारे जाली
वोटन ख़ातिर घर घर आये जीत के फुर्सत पाली
मंदी धंधों पे छाई रही मुँह फाड़ खड़ी बेरोज़गारी
खिलौने और पटक्खा बिन रह गए लल्ला लाली
महंगाई की मार पड़ी और फ़ीकी भई दिवाली
कहीं ग़रीबी कहीं बेकारी कहीं जेब हैं खाली

संबोधन

सुनते हो, अजी सुनो, सुन लेना, कहाँ हो तुम
मेरा संबोधन पहुँच जाता है चाहें जहाँ हो तुम
कैसा सात फेरों का रिश्ता जिसमें बंधे हम और तुम
हरेक पड़ाव में एक नए रिश्तें निभाते हम और तुम
प्रिय प्रेयसी मात पिता सखा बंधु सा स्नेह हरदम
तुम्ही शक्ति तुम्ही कमजोरी  तुमसे मैं सक्षम अक्षम
हर अवस्था रहा समाहित प्रेम समर्पण आकर्षण
हम दोनों का साथ इस परिणय सूत्र का है सम्बल
एक अंतराल जब स्वयं के रिश्तों से अधिक संतान पर
हम दोनों के मुखरित होते दायित्वबोध से प्रेरित स्वर
वे जब उड़ जाते छोड़ घोसले फिर एकाकी होते हम
पुनः अकेले फिर भी पूर्ण क्योकि संग साथ हो तुम
एक डोर से बंधे हुए एक दूजे की आवाज है हम
प्रेम मनुहार के अनगिनत पलों की किताब हो तुम
हँसते गाते हाथों में हाथ एक दूजे से कहते है हम
यू साथ निभाने को मिल जाना प्रिय जनम जनम
क्योंकि....
सुनते हो, अजी सुनो, सुन लेना, कहाँ हो तुम
मेरा संबोधन पहुँच जाता है चाहें जहाँ हो तुम

दीवाली

सूने थे चहुचौबारे गलियां भी खाली थी
उपवन की कुमसायी सी सब डाली थी
पड़े अवधेश के पग तो मनी दिवाली थी
पतझड़ मन ऋतु में छाई हरियाली थी
वैदेही पा अवध में खुशियां आली थी
देख लखन उर्मिल स्वर वीणापाणि थी
उर शोभित मंजुल मिलन दिवाली थी
भरत मिलाप से छटी रात जो काली थी
पुत्रों को पा ममता से माँ वारी वारी थी
राम लखन सीता से पूर्ण फुलवारी थी
सजी अजुध्या जगमग जगमग दिवाली थी
उसी दिवस के हर्ष में सम्मलित हो जाते है
एक साथ सब मिल दीप से दीप जलाते है
कारज हो पूर्ण जनों के स्वपन यही सजाते है
पावन है पर्व दिवाली मिल के साथ मनाते है
HAPPY DlPAWALI

तुम आओगे अभी

पुरानी पगडंडियों पर
न लौटने की चाह है
तुम आओगे अभी
न बाट जोहती राह है
पर तितलियों के पंख जैसी
तुम सजी आंखों में
आज भी रोमांच भरती
स्मृतियों की पाँखों में
हरसिंगार की झड़ी सी
मुस्कान मुझे याद है
बीते वर्षो बाद भी
बिछड़ने का अवसाद है
जो कभी था नहीं
परन्तु बड़ा अनमोल है
बेनाम ही सही किंतु
मेरे मन का मेलजोल है
चाँद को पाने की अब
न शेष इच्छित प्रवाह है
हुए नदी के दो छोर से
जुदा हम दोनों की राह है
प्रीत मन संचित मेरे
तुमसे स्नेह भी अताह है
पर पुरानी पगडंडियों पर
न लौटने की चाह है
तुम लौट आओगे अभी
न बाट जोहती राह है

मेरी मंजिल

महज दो कदम की दूरी पर
मुझे मेरी मंजिल नज़र आती हैं
पर क़िस्मत बड़ी बारीक़ी से
सेंध लगा के चली जाती हैं
समझाया मैंने मेरे मन को
मुठ्ठियों से रेत फिसल जाती है
और पानी पर लिखी ईबादत
अक्सर मिट ही जाती है
बदलती हवाओं की चाल
रोज एक नया गुल खिलाती है
पिछड़ गया हूँ मैं इस दौड़ में
रफ़्तार-ए जिंदगी बड़ी करामाती है
मंजिले मुक़म्मल पाने की
एक आह सी ही रह जाती है
महज दो कदम की दूरी पर
मुझे मेरी मंजिल नज़र आती हैं

कभी खुशी कभी गम

कभी खुशी तो कभी गम
रंग तो कभी बेरंग है ये जिंदगी
मौज के छलकते पैमानें
तो कभी ज़हर का घूट है जिंदगी
शौहरत के आसमाँ पे सवार
कभी गर्दिशों का नाम है जिंदगी
जोश-ए रफ़्तार की हमनवां
बेतकल्लुफ़ दौड़ती है ये जिंदगी
कभी मंजिलो से पिछड़ कर
थक हार के सिमटती है जिंदगी
जज्बातों की बारीकियों से
कभी टूटती बिखरती है जिंदगी
अपनो के हौसले अफ़ज़ाई की
कमबख्त मोहताज़ है ये जिंदगी
हर हालातों का हाथ थामें
थमती तो कभी चलती है जिंदगी
क़िस्मत के कोरे काग़ज़ पर
मनचाही इबादत लिखती है जिंदगी
कभी कोशिशें समझाने की
कभी बग़ावत करती है जिंदगी
सुलझाने की जद्दोजहद में
बेबफ़ा सी उलझती है जिंदगी
जिसे समझ सका न कोई
वो अनसुलझी पहेली है जिंदगी
ऐं नीरज छोड़ दें हर फ़िक्र
रब चाहेगा तो कट जाएगी जिंदगी

कल की आस निराली है

कल की आस निराली है
सोच आज की खाली है
कल को सुलभ बनाने में
भूले हैं आज निभाने में
जो दीख रहा वह बीत रहा
क्यू कल का सपना जीत रहा
वर्तमान की करें उपेक्षा
भविष्य बनाने की इच्छा
कैसी मोह माया का रंग है
कल का जीवन हुडदंग है
फिर भी जीवन भर लगे रहे
कल के ही सपने जगे रहे
न आज जिया न कल देखा
मनु जीवन स्वपनों को खेता
कल की सुंदर सरंचना में
तजता जीवन निततृष्णा में
और प्राण पखेरू हो जाते है
न कल न आज जी पाते हैं
जियों आज की बेला को
जानो समझो जीवन खेला को
की कल की आस निराली है
उस कारण....
सोच आज की खाली है!

रिश्तों में मिठास नहीं

द्वेष ईर्ष्या के घेरें में, रिश्तों में मिठास नहीं है
सच कहूं पिछले बीते दिन जैसी अब बात नहीं है
फूलों की सेजों पर भी चुभन बहुत है
उचटा मन आपाधापी में घुटन बहुत है
जीवन जीने की इच्छा पर समय साथ नहीं है
सच कहूं पिछले बीते दिन जैसी अब बात नहीं है
पाने की चाह लिए जब से लांघी चौखट घर की।
और पाली मैंने जीवन मे इच्छाएं दुनियां भर की।
संघर्षों के कारण अब वो दिन और रात नहीं है
सच कहूं पिछले बीते दिन जैसी अब बात नहीं है
ढूंढे मन मेरा औषद्व सा अश्वासन अपनों का
वहीं पुराना जीवन मन भावन सपनों का
भटक रही राहें संवेदन के बीते पलछिन में
जब चिंता न बैर भाव था मेरे कोरे जीवन मे
तब मन का मालिक था अब मेरी औकात नहीं है
सच कहूं पिछले बीते दिन जैसी अब बात नहीं है

यह कैसी कहानी

यह कैसी कहानी यह कैसा है रोना
कब तक पड़ेगा इन आँखों को भिगोना
बदलती है सत्ता और बदलते है चहरे
फिर भी लगे क्यों खुशियों पर पहरे
कोई कर्जे का मारा कहीं धंधे का दिवाला
रोजी रोटी का रोना बमुश्किल है निवाला
किसानों की किस्मत तो लुटे कहीं अस्मत
भृष्ट है प्रशासन वाह री परजा की किस्मत
महंगाई मारें मुफ़लिसी भी रुलाये
धर्म की आड़ में आतंक की हवाएं
देश एक हो कर भी झेलें विभिन्नताएं
महाराष्ट्र कहें उत्तरी बाहर को जाए
यह 21स्वी सदी में भी झूठे सपने संजोना
सिर्फ़ कोरें वादों से पड़े दो चार होना
यह कैसी कहानी यह कैसा है रोना
कब तक पड़ेगा इन आँखों को भिगोना

कल की ही बात

बीते कितने ही दिन कितनी ही रात
पर लगती जैसे हो कल की ही बात
चाहत थी पर हुआ नहीं अपना प्रेम संबाद
आँखे ही आंखों में था भावों का अनुवाद
मैंने पढ़ी थी आँखे तेरी जो यू कहती थी
इक पल दिख जाओ उत्सुक सी रहती थी
मेरी चाहत से बेमेल न थी चाहत तेरी
बस कहने सुनने में की थी हमने देरी
फिर जो कभी जुड़ा नहीं वह टूट गया
सपनों का मिलना जुलना भी छूट गया
तुम कहाँ मैं कहाँ इक दूजे से हुए अज्ञात
नहीं भाग्य में था हो पाना तेरा मेरा साथ
भूल चुका मैं तुमको जाने कैसे आई याद
बैठा लिखने फिर से भूले बिसरे जज़्बात
अब जब...
बीते कितने ही दिन कितनी ही रात
पर..
फिर भी लगे जैसे हो कल की ही बात।।।

जीवन जीने की कोशिश

जीवन को जीने की कोशिश में
असली जीवन भूल गया
नकल नक्काली और दिखावे से
सच्ची राहों से चूक गया
फेर रहा हरदम की कोई क्या कहेगा
इच्छाओं का सागर सूख गया
बीते दिन अपने दिल की सुनी नहीं
झुंझलाया सा मन मूक गया
बचपन में जो भी सपने किये इकट्ठे
यौवन तक आते वह संदूक गया
यह दुनियादारी इच्छाओं पर भारी
डर ऐसा मन मे फूक गया
हाबी तौर तरीके दूजो के माफ़िक
की असली जीवन भूल गया
नकल नक्काली और दिखावे से
मैं सच्ची राहों से चूक गया

इंसा

चकाचोंध और घोर विलासा
खो जाए इंसा अच्छा खासा
जहाँ सम्मोहन की पराकाष्टा
आकर्षण की हो स्वतः चेष्टा
ऐसा शहर जहा लोग पराये
ज़रूरत पड़े तो हो दाएं बाएं
परंतु बढ़तें पग खो जाने को
जो हासिल न हो वो पाने को
गाँव छोड़ सब शहरों की ओर
जहाँ नहीं अब अपनों की ठोर
कहीं सुविधाओं के ठाठबाट
कहीं बिखरा जीवन मन उचाट
तोलमोल की यह मायानगरी
मतलब के सब होते जिगरी
नित ईमान खरीदे बेचे जाते
मन से कुछ बेमन बिक जाते
मूल्य गिराने की हैं कला यहां
बड़ी भीड़ पर एकाकी विरहा
रंग बिरंगी कहीं धुंध कुहासा
आशाये फ़ेरे आये हाथ निराशा
यहाँ हर दूजा हैं ठगा ठगा सा
ये कैसी चकाचोंध और विलासा
खो जाए इंसा अच्छा ख़ासा...

नई जंग

समझ चुका हूं तुझे ए जंदगी
न हैरान हूं न दिल परेशां है
एक तू है तो हम यहां है
नई जंग तू जहाँ जहाँ हैं
जिंदगी दर्द तो कभी दवा है
सकूँ जिंदगी से हवा हवा हैं
चैन हासिल न हो सकें
यह भी जिंदगी का दावा हैं।
हँसते होंठो में छुपी बैचैनी
हर तड़प से जिंदगी बेपरवाह है।
एक हम तुम्हे संवारा हरदम
एक तू हमदम सी बेबफा है
ऐ जिदगी तेरे हर दर्द का
मुझसे बेहतर ख़ुदा गवाह है
बेग़ैरत तेरी नाइंसाफी अदा पे
क्या कहूँ....
सकूँ जिंदगी से हवा हवा हैं!!!

जिंदगी

जिंदगी इस कदर सुबहो शाम हो रही
वक्त की जीत है यह तमाम हो रही
मुठ्ठियों में रेत सी फिसलती हैं जिंदगी
दौर-ऐ मुश्किलों से संभलती है जिंदगी
भीड़ है भी तो क्या गमे गुमनाम हो रही
मंजिलों की दौड़ से ये बेअंजाम हो रही
कोशिशें हज़ार, सुकूँ मिलता कभी कभी
शिकवा भी क्या करें गिरफ्त में है सभी
मैं परेशां हूँ ये बात हर जुबाँ आम हो रही
बेबफा है मंजिले कोशिशें बदनाम हो रही
कल को भूलें नहीं, आज ने छीनी जमीं
इत्तिफ़ाक़न नहीं सरेआम सताती है जिदगी
जिंदगी इस कदर सुबहो शाम हो रही
बस वक्त की जीत है यह तमाम हो रही

चिंताएं

साथ न छोड़ेगी, कोसने पर वक्त जायां न कीजिये।
उम्र भर की साथी हैं चिंताओं को ताख पे रख दीजिए।
तरीक़े ही सुकून देंगे, नए तरीक़े इज़ाद किया कीजिये।
वरना ख़ुद ही को तड़पने के लिए तैयार कर लीजिए।।
क्योंकि चुनौतियों चिंताओं मजबूरियों का तालमेल है।
और जिंदगी इन्ही तीनों से निबटने का अज़ब खेल है।
क्यों कब कैसे इस हेरफेर पर नाहक ही गौर कीजिए।
यह तो ताउम्र की साथी है इन्हें ताख पर रख दीजिए।

दर्द

देश खाया प्रदेश खाया , हमने बेच दिया जमीर!
अब निर्धन को खाउंगा, ताकि बचे अमीर!
गली गाव पर केतु भारी क्या बदलेगी तक़दीर!
हम दिखलावे के मलहम है हमसे ही है पीर!
चुनाव बाद हम महलों में काबिज, तेरे पल्ले नीर!
तानाशाही वजुद हम्हारा, जो तुम पर जकड़े जंजीर!
घोटालों से भरे खजाने, किस्मत में मेवे खीर!
पर अभी तो.....
निर्धन को खाउंगा, ताकि बचे अमीर!
कथनी पर न जाइये हम छोड़ें झूठे वादों के तीर!
हम कांग्रेसी सिपाही है जो घाव करे गम्भीर!
देश खाया प्रदेश खाया , हमने बेच दिया जमीर!

शहादत

गोदी से छिटका कर बोला जल्दी आऊंगा
जब आऊंगा तुझे काँधे पर सैर कराऊंगा
मेरा वादा टूट गया जीवन मुझसे रुठ गया
आना था पर साँसों का बंधन ही छूट गया
ऐ लाल मेरे अब तुमको कसम निभानी है
सजा संगीन मातृ भूमी की लाज बचानी है
मेरा अंतिम चुम्बन प्रेम आलिंगन रखना याद
अब तुम जितनी माँ उतनी पिता हो मेरे बाद
इस लिए स्मरण कर मुझे सिर्फ सुख संजोना
नाहक अश्रुरित हो मत अपनी आंख भिगोना
हम दोनों की प्रेम निशानी अपना लाल सलोना
नितांत आवश्यक उसमे देशप्रेम का भाव होना
पालपोस उसे देश निजसेवा की इच्छाएं भरना
मेरे बाद प्रिया मेरी तुम घर की सरंक्षक बनना
कहीं हार न जाएं मेरे दर्द से मेरे बुढ़े मात पिता
व्याकुल होना स्वाभाविक है बेटे की देख चिता
अब तुम जितनी बहू उतनी ही बेटा हो मेरे बाद
उनका सूनेपन भरने का करना भरसक प्रयास
शहीद पति की पूर्ण करनी यह अंतिम फरियाद
मेरे प्यार मनुहार वादों यादों को रख लेना साथ
मैं गया नहीं इस माटी से फिर अंकुर बन फुटूंगा
बन वृक्ष अपनी छाँव में तेरे सूनेपन को भर दूंगा
इसलिए सदा स्मरण कर मुझे सिर्फ सुख संजोना
प्रिय नाहक अश्रुरित हो मत अपनी आंख भिगोना

मेरा देश बदल रहा है

लोग कहतें हैं कि मेरा देश बदल रहा हैं
सच कहूँ तो पुराने ढर्रे पर चल रहा हैं
सैतालिस में हुए आज़ाद लोग कहते हैं
भरम पाले ज़ुल्म नफ़रतों का सहते हैं
कहें सियासत ज़न्नतें वतन हैं कश्मीर
जवानों की शहादत की रही जहां पीर
जन्नत कह कब तलक दिल बहलायेंगे
इस नासूर को मिटा ही जां बचा पाएंगे
ख़ूनी जंग-ए सितम लिए हाथ मे पत्थर
खुलेआम देश की अज़मत करें तरबतर
लाख महौब्बतों से भी जो रहे हैं बेअसर
लगे जैसे आस्तीन में साँप पल रहा हैं
और...
लोग कहतें हैं कि मेरा देश बदल रहा हैं
न कुछ बदला हैं न कभी कुछ बदलेगा
यह नासूर है जिस्मों जां तक सड़ा देगा
पाल लो इनको वीरों की शहादत के बदले
या इन्हें मौत बक्शो बजाए बेवज़ूद जुमले
इंतिहां हो गयी अब इनका सितम खल रहा हैं
बड़ा बेवज़ह लगता कि मेरा देश बदल रहा हैं
सच कहूँ तो पुराने, हाँ पुराने ढर्रे पे चल रहा हैं

शत शत नमन

🙏🌹वीरों को शत शत नमन🌹🙏
सभी ने ख़बरे सुनी चन्द लम्हें ग़मज़दा हुए और फिर सो गए
ज़रा उन घरों से पूछे जिनके बेटे, पति, पिता और भाई खो गए
सुनो बेटे अपना ध्यान रखना खाना समय से खा लेना
सुनो जी इंतजार रहेगा वक्त मिलते ही फोन मिला लेना
पापा तुम बिन मन नहीं लगता इस बार जल्दी आ जाना
अपन दोनों मिलकर बनाएंगे, भाई मकान हो गया पुराना
कहती छोटी बहना,भाई जब आना मुझे भी पीहर बुलाना
अये मेरे यार जल्दी आओ मिल बैठे गुज़र गया है जमाना
किसी का प्यार किसी का दुलार किस जहान वो ज़ुदा हो गए
गए बहुत दूर की जुदाई की तड़प में हर एक रिश्तें नातें रो गये
और......
हम सभी ने ख़बरे सुनी चन्द लम्हें ग़मज़दा हुए और फिर सो गए
कोई उनसे पूछे जिनके बेटे, पति, पिता, भाई संगी साथी खो गए

             🙏🌹वीरों को शत शत नमन🌹🙏