Tuesday, February 19, 2019

संबोधन

सुनते हो, अजी सुनो, सुन लेना, कहाँ हो तुम
मेरा संबोधन पहुँच जाता है चाहें जहाँ हो तुम
कैसा सात फेरों का रिश्ता जिसमें बंधे हम और तुम
हरेक पड़ाव में एक नए रिश्तें निभाते हम और तुम
प्रिय प्रेयसी मात पिता सखा बंधु सा स्नेह हरदम
तुम्ही शक्ति तुम्ही कमजोरी  तुमसे मैं सक्षम अक्षम
हर अवस्था रहा समाहित प्रेम समर्पण आकर्षण
हम दोनों का साथ इस परिणय सूत्र का है सम्बल
एक अंतराल जब स्वयं के रिश्तों से अधिक संतान पर
हम दोनों के मुखरित होते दायित्वबोध से प्रेरित स्वर
वे जब उड़ जाते छोड़ घोसले फिर एकाकी होते हम
पुनः अकेले फिर भी पूर्ण क्योकि संग साथ हो तुम
एक डोर से बंधे हुए एक दूजे की आवाज है हम
प्रेम मनुहार के अनगिनत पलों की किताब हो तुम
हँसते गाते हाथों में हाथ एक दूजे से कहते है हम
यू साथ निभाने को मिल जाना प्रिय जनम जनम
क्योंकि....
सुनते हो, अजी सुनो, सुन लेना, कहाँ हो तुम
मेरा संबोधन पहुँच जाता है चाहें जहाँ हो तुम

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