रौशन-ए आफ़ताब सी मेरी हमनशीं है
लज़ा के चाँद की नज़र भी झुकी झुकी है
उसकी की महक से फ़िज़ा बहकी बहकी है
सारे चमन के फूलों में घुली ख़ुश्बू उसकी है
लज़ा के चाँद की नज़र भी झुकी झुकी है
उसकी की महक से फ़िज़ा बहकी बहकी है
सारे चमन के फूलों में घुली ख़ुश्बू उसकी है
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