Tuesday, February 19, 2019

शहर छोटा सपने बड़े

दौड़ में आगे निकल जाना था
पाना था बहुत कुछ पाना था
शहर छोटा सपने बड़े बड़े थे
मंजिल पाने कुछ ऐसे अड़े थे
चाह में संजोयें एक बड़ा सपना
मैं छोड़ आया वह शहर अपना
बाहें फैलाये तरक्की का छद्माभास
बड़े शहर में सब पाने का एहसास
नित नई मंजिलों का आमंत्रण उदघोष
समीप आओ भर के उमंग नया जोश
चले आओ तुम्हारी मंजिले है यहाँ
रोटी कपड़ा मकान शान शौकत यहाँ
कदम भी बढ़े उस ओर जहाँ तरक्की थी
सच यहाँ दौलत शोहरत की पनचक्की थी
जो चाहा वह सब कुछ मिलता गया
चकाचोंध के बाजार में सकूँन बिकता गया
कदम तो बढ़े पर मन साथ न आया
मन की आंखों में अपनत्व का घना साया
वो छोटें शहर की यादों का बसा आया
अंजान बड़े शहर को न अपना पाया
मन उंगलियों को थामें छोटे शहर के यादें
कहती मुझे मेरे शहर की जिंदगी लौटा दें
मुझे रुसवा कर पाना भी क्या पाना है
जंगल सा शहर यहाँ हर शख्स अंजाना हैं
मन की चाह अपनी गालियां अपने लोग
वही सच्ची धन दौलत वैभव उपभोग
मन कहें लौटा दे नीरज मुझे लौटा दें
मुझे मेरे छोटें से शहर की मीठी यादें।

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