Tuesday, February 19, 2019

कल की ही बात

बीते कितने ही दिन कितनी ही रात
पर लगती जैसे हो कल की ही बात
चाहत थी पर हुआ नहीं अपना प्रेम संबाद
आँखे ही आंखों में था भावों का अनुवाद
मैंने पढ़ी थी आँखे तेरी जो यू कहती थी
इक पल दिख जाओ उत्सुक सी रहती थी
मेरी चाहत से बेमेल न थी चाहत तेरी
बस कहने सुनने में की थी हमने देरी
फिर जो कभी जुड़ा नहीं वह टूट गया
सपनों का मिलना जुलना भी छूट गया
तुम कहाँ मैं कहाँ इक दूजे से हुए अज्ञात
नहीं भाग्य में था हो पाना तेरा मेरा साथ
भूल चुका मैं तुमको जाने कैसे आई याद
बैठा लिखने फिर से भूले बिसरे जज़्बात
अब जब...
बीते कितने ही दिन कितनी ही रात
पर..
फिर भी लगे जैसे हो कल की ही बात।।।

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