Tuesday, February 19, 2019

तुझ संग

जिस पल मैंने संग लिए थे तुझ संग अग्नि के फेरे
उस पल सपनों की बारात सजी थी अंतर्मन में मेरे
प्रिय तुमने मेरे कोरे जीवन में गीत रचे हैं बहुतेरे
खट्टी मीठी सी यादों के पल संवरें कुछ मेरे कुछ तेरे
मन रोमांचित कर जाते है जब जितना इन्हें उकेरे
जीवन के झंजावत में तुम रहती संग सांझ सबेरे
यू ही हँसते गाते कट जाएंगे सुख दुःख के हर फेरे
अरुणिमा बन एकाकी जीवन के तुमने हरे अंधेरे
जीवन संगनी बन मन मंदिर में सजी तुम धीरे धीरे
चंचल सरल सलोनी सी तुम जैसे माणिक मोती हीरे
सोचू तो तुम बिन लगते जीवन के सारे स्वपन अधूरे
अपरिचित रिश्तें के रंगों ने ही रिक्त चित्र किये थे पूरे
जिस पल मैंने संग लिए थे तुझ संग अग्नि के फेरे
उस पल सपनों की बारात सजी थी अंतर्मन में मेरे

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