Tuesday, February 19, 2019

दो लाइनें यू हीं

कल तलक थे जेल में आज संसद के द्वार खुल गए
जीत कर रुतबा मिला और सारे दोष धूल गए
ये राजनीति की गलियां जहाँ चोर सिपाही सब मिल गए

बरस अब की बरस मेघा जरा जोर से
बह जाए द्वेष घृणा क्लेश चहु ओर से

फुहार है या प्यार है?                       
जब जिंदगी की तपिश जला रही थी मुझे
वह बारिश की बूंद बन भीगा रही थी मुझे

जो चाहूँ वह मिल जाएगा
कोई भी पल डरा न पायेगा
सच ही हर बच्चे की सोच है
पिता है तो जग जीत जाएगा

दुनियां सच कहती है
मिलेगा वही जो किस्मत में होगा तेरी
आज़माया तो सच पाया
तभी तो.. किस्मत से मिली हैं माँ मेरी


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