निर्मल बहती कलकल का मधुर संगीत सुनाती
वर्षा, हिम की बूंदों से मिलके अस्तित्व है पाती
गंगा जमुना सरस्वती ये पावन नदीयां कहलाती
जो सागर से आलिंगन कर वाष्प बन उड़ जाती
नील गगन में बदरा स्वरूप में सज सवर जाती
पुनः मेघा बन फिर धरती पर जो बरस जाती
नदियां ही है अलख धरा का जीवन कहलाती।
बनो नदी सा निर्मल पावन ये हरित धरा बनाती
सदियों से जो जन जीव जंतु की प्यास बुझाती
बूंदों से मेघा तक के जीवन चक्र का सबक बताती
और सदा सदा.....
निर्मल बहती कलकल का है मधुर संगीत सुनाती 🙏शुभ रात्रि🙏
वर्षा, हिम की बूंदों से मिलके अस्तित्व है पाती
गंगा जमुना सरस्वती ये पावन नदीयां कहलाती
जो सागर से आलिंगन कर वाष्प बन उड़ जाती
नील गगन में बदरा स्वरूप में सज सवर जाती
पुनः मेघा बन फिर धरती पर जो बरस जाती
नदियां ही है अलख धरा का जीवन कहलाती।
बनो नदी सा निर्मल पावन ये हरित धरा बनाती
सदियों से जो जन जीव जंतु की प्यास बुझाती
बूंदों से मेघा तक के जीवन चक्र का सबक बताती
और सदा सदा.....
निर्मल बहती कलकल का है मधुर संगीत सुनाती 🙏शुभ रात्रि🙏
No comments:
Post a Comment