Tuesday, February 19, 2019

हाल-ऐ दिल जान लेती है

न जाने कैसे वह हाल-ऐ दिल जान लेती है
माँ मेरी परछाई से भी मुझे पहचान लेती है
दूरियां कितनी भी हो, चाहे लाख छुपाऊ मैं
होगी परेशां वह, सोचता हूं कुछ न बताऊँ मैं
किंतु परंतु फिर भी, हर स्तिथी  भान लेती है
हर दुविधा से उबारने की मन में ठान लेती है
मैं माँ बात करता हूँ जब निराश मन हारता है
जीत जाता हूं जब कोई दुलार के पुकारता है
वह माँ ही है बेटा कैसा भी हो पर जान देती है
जो नन्हे खिलौने को पाल पोस पहचान देती है
संस्कारो की पहली क्यारी जो सद्ज्ञान देती है
हाँ मेरी माँ मेरी है ये बात ही अभिमान देती है
बसंत कितने ही हमने देखे गोद माँ की भाती है
सुख की तुलना कहाँ जो ममत्व से सहलाती है
एक वह ही है जो हाल-ऐ दिल जान लेती है
माँ मेरी परछाई से भी मुझे पहचान लेती है

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