गीत मस्तियों के गुनगुनाकर
झरने पहाड़ हरियाली पार कर
अनंत दृश्य नेत्र में समेट कर
मैं लौट आया वादियों से घूम कर
मन मोहक प्रकृति को चुम कर
छणिक पल मदमस्त झूम कर
अलौकिक सौंदर्य से निकल कर
मैं लौट आया वादियों से घूम कर
देवदार घिरे जंगलो का शांत पहर
जहा जून के ताप का था न कहर
शीतल हवा से तपते अपने शहर
मैं लौट आया वादियों से घूम कर
झरने पहाड़ हरियाली पार कर
अनंत दृश्य नेत्र में समेट कर
मैं लौट आया वादियों से घूम कर
मन मोहक प्रकृति को चुम कर
छणिक पल मदमस्त झूम कर
अलौकिक सौंदर्य से निकल कर
मैं लौट आया वादियों से घूम कर
देवदार घिरे जंगलो का शांत पहर
जहा जून के ताप का था न कहर
शीतल हवा से तपते अपने शहर
मैं लौट आया वादियों से घूम कर
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