बैरी जीवन को जीने की यह होड़ कैसी
जो अनिश्चित अंतहीन रास्तों के मोड़ जैसी
व्याकुल हो कर के क्यो यह मन घबराता है
जिसपे जोर नहीं अपना नाहक जोर अजमाता है
दर्द की उम्र क्यूँ बढ़ाएं मन के धरातल पर
अडिग हो डिगा रहे आत्मआस की डगर पर
कल का भय लिए क्यों आज को गवाता है
चुनौतियों से निखर ही जीवन बल पाता है
भाग्य करें न बैठे बैठे किया हुआ ही पाता है
सरस कहाँ जीवन क्यों सत्य से कतराता है
जिसपे जोर नहीं अपना नाहक जोर अजमाता है
जो अनिश्चित अंतहीन रास्तों के मोड़ जैसी
व्याकुल हो कर के क्यो यह मन घबराता है
जिसपे जोर नहीं अपना नाहक जोर अजमाता है
दर्द की उम्र क्यूँ बढ़ाएं मन के धरातल पर
अडिग हो डिगा रहे आत्मआस की डगर पर
कल का भय लिए क्यों आज को गवाता है
चुनौतियों से निखर ही जीवन बल पाता है
भाग्य करें न बैठे बैठे किया हुआ ही पाता है
सरस कहाँ जीवन क्यों सत्य से कतराता है
जिसपे जोर नहीं अपना नाहक जोर अजमाता है
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