Tuesday, February 19, 2019

मुस्कराना चाहता हूँ

तिज़ारत क्यों आँसुओ से मिल के मुस्कराना चाहता हूँ 
मैं दीवाना हूँ दीवानगी की हद से गुज़र जाना चाहता हूं
दो चार का साथ नहीं तहे-दिल ज़माना चाहता हूँ
मुहब्बत के खातिर मैं बीते हर रंज भुलाना चाहता है
मैं तेरे लिये तू मेरे लिए लाज़मी ये बताना चाहता हूँ
वज़ह जो दीवारों की वह हर ईट छुपाना चाहता हूँ
तिज़ारत क्यों आँसुओ से मिल के मुस्कराना चाहता हूँ 
जमीं पे अमन के कतरों से सजा समुंदर बहाना चाहता हूँ
मैं ज़माने भर को मुक़म्मल आशियाना बनाना चाहता हूँ
तमाम दूरियां को पाट कर मैं क़रीब आना चाहता हूँ
ख़ामोशियां बेहतर मैं बाग़ी आवाज दबाना चाहता हूँ
गुमां की दौलत आड़े उसे आज जलाना चाहता हूँ
रौशनी के ख़ातिर तुझे ख़ुद के करीब लाना चाहता हूँ
हाँ मैं दीवाना हूँ दीवानगी की हद से गुज़र जाना चाहता हूं
तिज़ारत क्यों आँसुओ से मिल के मुस्कराना चाहता हूँ

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