Tuesday, February 19, 2019

वो काव्य अधूरा नीरस है

वो काव्य अधूरा नीरस है
जिसने वीरों का न गुणगान किया
करे सर्जन उन सूरवीरों पर
जिनने लहू लोहू का दान दिया
सौन्दर्यता पर गीत रचे
उन्मादों पर व्याख्यान किया
कलमकार के शब्द सजे
तो यौवन पर गुणगान किया
नकली चहरे नकली भाव
नित शब्दों से श्रंगार किया
खालिस खरे रूप धनी
वीरों का पौरुष बिसार दिया
जिन प्राणों की आहूत ने
सदा संरक्षित जीवनदान दिया
भूमि सुसज्जित पुष्पो से
कालांतर संवरे बलिदान दिया
घर आँगन को त्याग जिन्होंने
है देश प्रथम यह मान दिया
कलम मंझे उन के गीतों से
जिन वीरों ने जीवन वार दिया
तो लेखन में अमरत्व सजें
सरस्वती का वंदनवार किया
प्रिय प्रेयसी सौंदर्य सर्जन
कभी प्रेम प्रसंग मनुहार किया
चाँद चकोर मिलन आलिंगन
नव सृजन भाव श्रृंगार दिया
शब्दों को क्या किया समर्पित
यदि वीरों का न बखान किया
वो काव्य अधूरा नीरस है
जिसने शौर्यता का न गुणगान किया
करे सर्जन उन सूरवीरों पर
जिनने लहू लोहू का दान दिया
गीत ज्वलंत हो उन भावों से
जिस अमर वीर जवान जिया
निर्झर जल सा गतिमान जो
प्रहरी बन जीवनदान दिया
तपन तूफ़ानी शीत लहर में
जिसने ऋतुओ को निढाल किया
नदियां पर्वत मरुथल जंगल
जिसने यथा अवस्था ढाल लिया
उन वीरों के महिमामंडन का
यदि नही व्याख्यान किया
वो काव्य अधूरा नीरस है
जिसने वीरों का न गुणगान किया
करे सृजन उन सूरवीरों पर
जिनने लहू लोहू का दान दिया

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