Tuesday, February 19, 2019

माँ

मिट्टी को स्वरूप दे जो एक मुकाम देती
जीवन वार जो अपना सुबह और शाम देती
वह माँ ही है जो जीवन की घनी धूप में
अपने शीतल आँचल में ममता भरी छांव देती है
दुनिया की कठिन डगर वह सार्थक अंजाम देती है
माँ ही है अटूट ताकत भरा पिता  ईनाम देती है
दोनो की उंगलिया पकड़ अपने पैर खड़े हो गए हम
आज कहते उनसे आप क्या समझेंगे बड़े हो गये हम
भूल गए जो हमहारे सपने सजा मुकाम देते है
घुटने पर रेंगते बच्चे को जो अपना नाम देते है
ओलाद की खुशी में ही अपना सामदाम देते है
अंततः उन्हें ही हम नासमझ का तगमा इनाम देते है

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