Tuesday, February 19, 2019

थी पसंद वह

थी पसंद वह उसकी चाहत का अंदाजा था
दिले नादान था मर मिटने पर आमादा था

न कुछ कहती थी न सुनती थी
वो बड़ी खामोश सी रहती थी
उसकी खामोश भी कहती थी
की वो मेरे ख्यालों में रहती थी

उसे मुंडेर पे मेरी आहट का अंदाजा था
रब ने भी उसे मेरी चाहत से नावाज़ा था

थी ख़बर मुझे, मेरे ख़्वाब आते थे
उसे रातों से रह रह कर जगाते थे
ख़ामोश रात संग वह गुनगुनाती थी
आंखों ही आंखों में कह जाती थी

वो रहेगी सदा दिल मे ख़ुद से वादा सा था
बिन बंधे किसी डोर मोहब्बत का इरादा था

तन्हाइयों में मेरा नाम लिख कर
आंख चुराती थी वह शर्मा कर
कांपते हाथों से जब सरक कर
गिर जाती थी कलम फ़र्श पर

मुझे उसकी निकलती आह का अंदाजा था
मेरा नाम पूरा न हो पाने का दर्द ज्यादा था

आँचल की चुन्नी में था एहसास मेरा
दिलों की दुनियां में चाहत का पहरा
बिन साथ एक ख्वाब सजाती थी वो
अनूठे बंधन की कसमें निभाती थी वो

न जुड़ के भी एक रिश्ता  इल्हादा सा था
वो रहेगी सदा दिल मे ख़ुद से वादा सा था

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