Monday, March 12, 2012

सोच कर देखो

सोच कर देखो
इस सोच के साथ
की सोच स्वार्थ से परे हो
बोल कर देखो
ऐसे शब्दों के साथ
जो सर्वकर्ण प्रिय हो
कैसे मतभेद
और कब तक मतभेद
त्यागों अपना पराया
कैसा निपट दिखावा
जकड़ी मन में जंजीरें
पहुँची मधुर विष तीरे
न्याय नहीं मुक्त मन से
बिछड़े सात्विकयुक्त तन से
अंतर्मन मौन हुआ
फिर मन का मालिक कौन हुआ
कटु सत्यं स्वीकार नहीं
नैतिकता पर अधिकार नहीं
जाने किस बंधन बंधे हुए
संकीर्णता से जड़ें हुए
संस्कार भी विलुप्त हुए
सारे काज गुप्त हुए
रची कहानियों के सानिध्य से
ज्ञात हुआ तुम जगते थे भीतर से
फिर कब कैसे अज्ञात हुए
बीती पुरानी बात हुए
क्या पुन्हा मिल पाओगे
क्या फिर ठहर जाओगे
मिलो कभी इस सकल्प से
न जाने की इच्छा से
की नाम सुना सा न लगे मात्र
इंसानियत भरा हो हर पार्थ
हां इंसानियत मै ठुंठता
स्वम में पता पूछता
हार गया थक गया
उदास मन ठुंठता
मिलो फिर मिलो
शान्ति और अमन के लिए
जूझते जीवन के लिए
टूटते सपनो के लिए
घृणित मन बदलाव के लिए
मिलो फिर मिलो
हर इनसान के भीतर
इंसानियत के लिए
मिलो फिर मिलो
ना जाने के लिए
ए इंसानियत तुम मिलो
इनसान से हैवान हुए
इनसान के लिए मिलो
मिलो फिर मिलो
इन्सानियत फिर मिलो...........

दुर्दशा


दुर्दशा
जानवरियत कि हद तक
मै इनसान था
भूल गया
पूर्वज वानर थे
हम फिर वानर हुए
वह बन्धुआ नहीं थे
हम स्वतंत्र नहीं
वे आज़ाद घुमते रहते थे
हम बंन्दिशो से बेहाल हुए
मौलिक अधिकारों से वंचित
माणुस से अमानुस हुए
पहचान कौन
कौन पहचाने
एक लंबी कतार में
अपनी पहचान से
तार तार हुए
मान सम्मान बेमानी
हुयी बेशर्म कहानी
बदल गयी कैसे तस्वीर
उलाहना भरी मन की पीर
अब आँखें भी अश्रु विहीन
हालातों के हुई अधीन
पशु जीवन जीने को तैयार
विलुप्त परिवर्तन का संचार
हा मानुस से हुआ अमानुस
और मै इनसान था
भूल गया…...भूल गया……
दुर्दशा
जानवरियत कि हद तक
मै इनसान था
भूल गया!

कोई ना जगायेगा

कोई ना जगायेगा ख़ुद ही तू जाग 
जागो भाइ जागो, भोर हुई
चिड़ि़यों का चहचाना
मंद पवन का बहना
मन्दिर में शंखनांद
और भोर की पहली अज़ान
अब सुनाई ना देगी
मुर्गे की बाग़
दुहती गाय का झाग
अंगीठी का धुँआ
बाल सहलाती बुआ
अब दिखाई ना देगा
मिया का सलाम
हिंदू का प्रणाम
आँगन की चहल
सूर्य अर्क से पहल
दादा की गोदी
दादी का दुलार
साथ में बसता
सयुक्त परिवार
मोह्ल्ले की रौनक
बर्तन की खनक
अब सुनाई ना देगी
किसकी प्रतिक्षा
काहे की इछा
बदला है भेष
बदला परिवेश
परम्परा को त्याग
जिंदगी बेजोड़ हुई
अब तो जगाये घड़ी का अलार्म
तो जागो भोर हुई
पहले परिवर्तन की करते थे मांग
तो क्यू परम्प्राये तेरी चितचोर हुई
अरे वह् ज़िदगी कुछ और थी
यह जिंदगी कुछ और हुई
फिर सत्यं से क्यू भाग
जब स्तिथिया कुछ और हुई
पुरानी मानसिकता के रस्ते को लाँघ
यादे तो खालिश मौखौल हुई
कोई ना जगायेगा ख़ुद ही तू जाग
जागो भाइ जागो, भोर हुई

चादर झूठ की,

माना हम्हारी 'अपनी परछाई हम्हारे होने का दस्तावेजी प्रमाण है।
पर बिना साथ हम अधूरे है क्यूँकि साथ ही जीवन का रामबाण है! 
रुक जा भाई ठहर जां,
किसका पीछा करता तू!
यह तो बस परछाई है,
नाहक पीछे पड़ता तू!
परछाई कब हाथ किसी के,
काहे को पछताता तू !
सच्चाई तेरे साथ खड़ी,
काहे झूठ छिपाता तू !
ओड़ी चादर झूठ की,
किस को कुछ दिखलाता तू !
ईर्दगिर्द यह दुनिया सारी,
ठेंगा इसे दिखाता तू !
मतलब पसंद मिजाज तिहारा,
बेमतलब काम न आता तू !
एक दिन कोई साथ ना होगा,
ख़ुद को अलग थलग बनाता तू !
थम जा भाइ संभल जा,
कल क्यो मुश्किल बनाता तू !
रुक जा भाई ठहर जां,
किसका पीछा करता तू !
यह तो बस परछाई है,
नाहक पीछे पड़ता तू !

हमजोली

तेरे रंगों में रंगी
पिया मै तेरी ही हो ली
तू मेरा जिया
और मै तेरी हमजोली
सारे रंग फीके
न रिझाये मोहे होली
चढ़ा रंग तेरा
तू ही खुशियों की झोली
तेरे ही स्पंदन से
प्रिय बसंती मन, दामन, चोली
पूरी की पूरी पिया तेरी हो ली
मोहे न ललचाये निगोड़ी यह होली!
तू मेरा जिया
और मै तेरी हमजोली

खूबसूरती

तुम किसी भी दिल में हसरत जगा दो
तुम वह की उमर की हर दहलीज़ भुला दो
तुम्हे इश्क कहूँ या बेकरार दिल की बेबसी
जिसे एक पल भी बिसार न सकूँ तुम वह हँसी
इस खूबसूरती पर तुम्हे भी कभी तो नाज़ होता होगा
तुम्हे कोई और चाहे तो खुदा को भी ऐतराज होता होग
मै कह सकता हूँ खूबसूरती की मुकम्मल तस्वीर हो तुम
जिंदगी गुल से गुलजार बन जाए वह तक़दीर हो तुम
मानता हूँ कि मै तेरे रूप पर कायल हो गया हूँ
हां मै तेरी एक ही झलक में घायल हो गया हूँ
ऐ जाने ग़ज़ल तुम तब्बसुम तुम नज्म तुम बेमिसाल हो
उलझ के रह गया तुझमें तुम वह महजबीं ख्याल हो
उफ ख्यालो निकलना भी चाहूं तो नामुमकिन है
अब ना बस में मेरी रातें न मेरे दिन है
तुम क्या हो और किसी को क्या बना दो
हर बोझिल धड़कनों में तुम चाहत जगा दो
तुम किसी भी दिल में हसरत जगा दो
तुम वह की उमर की हर दहलीज़ भुला दो

सांझे चूल्हे कि विदाई

न प्यार सही पर लड़ाई भी न हो
तारीफ न सही तो बुराई भी न हो
घर कि फूट घर में ही बेहतर
कहीं सारे जग में हँसाई भी न हो 
मामलात बैठ के सुलझाने के हो
बठे बिठाये कहीं तबाही भी न हो
संग साथ हमने ईद होली मनाईं
नफरत के चलते कहीं नजर मिले भी न हो
ऐसे मन्सूबे बेनकाब हो नीरज
सांझे चूल्हे कि देखो कहीं विदाई न हो
न प्यार सही पर लड़ाई भी न हो
तारीफ न सही तो बुराई भी न हो

दो जिस्म एक जान

मै बीच भँवर में फँसा हुआ
पीड़ित मन भीतर उफान था!
सब कुछ अपना हार गया मै!
यह प्रेम व्यथा मझधार था 
बहुत कुछ कहने को था!
मै सोच की उड़ान पर था!
मन के मंथन से ओतप्रोत!
व्याकुलता के तूफान पर था!
मेरे स्वप्नों में आलिंगन तेरा!
मै दो जिस्म एक जान था!
मेरी साँसें तुझमें बसती!
तुमसे प्रिय प्रज्वलित प्राण था!
मै मोहित ऐसे सपने का!
जो मन का माया जाल था!
मेरा भ्रम ही जीवनधारा!
जिसमे बंधा मै धनवान था!
तुमने प्रिय क्या कह दिया!
तू मेरे प्रेम से अज्ञान था!
अब टूटा मै एक तारा सा!
बंजर बस्ती में वीरान सा!
अब कैसे यापन होगा मेरा!
साथ नहीं जब तेरा मेरा!
तेरे स्वप्न सुनहरे ही होंगे
और रंग मेरे बेरंग होंगे!
शेष बची बस अश्रुरित रातें!
दुर्भाग्य प्रिय हम साथ न होंगे!
पूर्व दिवस ही अच्छे थे!
जब प्रिय मन मिलन का आस था
सारी रातें सुनहरी थी
हर दिन पूनम का चाँद था
तुम ही थी मनमीत मेरी!
तुम पर रचित प्रेमपुराण था!
बहुत कुछ कहने को था!
मै सोच की उड़ान पर था!
मेरे स्वप्नों में आलिंगन तेरा!
मै दो जिस्म एक जान था!

सुख चैन जीवन का


प्रिय तेरे साथ ही चला गया
सारा सुख चैन जीवन का
मेरे मन के कोरे कागज पर
लिखा फसाना मेरे दिलबर का
तेरी हँसी खनकती सी
साज़ बनी मेरे जीवन का
तेरे पायल कि खनखन से
था पागल मन मेरा बहका
पहले थी यह रातें छोटी
अब ऐहसास मुझे पल पल का
आते जाते तुझको ढूँढू
हाल ना पूछो मेरे मन का
हर रोज़ तुम आती सपनो में
दर्द जगाती टुटे स्वप्न का
मेरी यादें न तुझसे दूर
मै कल्पित हूँ इस बंधन का
बिखरे सपने बिखर गया मै
मन आस रहा आलिंगन का
मेरे हाथ न हाथ तेरा
अहोभाग्य है तेरे कंघन का
जो ख़ुद से तूने अपनाया
तरस नहीं मेरे पागलपन का
दर्पण को भी अभिमान प्रिय
जो द्र्श्यमान तेरे सुंदर यौवन का
प्रिय मेरी रूह में बसती तुम
पर छुए तुझे, झोका मंदपवन का
प्रिय तेरे साथ ही चला गया
सारा सुख चैन जीवन का
मेरे मन के कोरे कागज पर
लिखा फसाना मेरे दिलबर का

होली तो होली

धरती के रंगों में घुला रंग नफरत का 
और दूर हुआ मन से नशा मुहब्बत का 
कभी गलियों में होता था रंग का हुड़दंग
सर पर चड़ बोलती थी तबीयत की भंग
अब साथ में त्यौहार भला कैसे मनाये
जकड़ी हुई देखो धर्मो की झूठी मान्यताये 
जाने कहा लुप्त हुयी प्रेम भरी आस्थाये
मन की तसल्ली को कलफी कामनाये
रोकती जो टोकती प्यार की ठिठोली
अब तो बस यादों में बसती है होली
अबीर और गुलाल भरी बच्चो की झोली
जातपात भुलभाल मस्तों की टोली
यौवन में डूबी वह सुरतिया भोली भोली
काश बीते दिन आते और बहती फुआर
फिर से संग साथ की, चलती बयार
आपसी रंजिशो का न होता प्रहार
तो होली तो होली, मनता हर त्यौहार

तुम कहा हो!


माटी के तिलक साथ मेरी मांग करी सुनी
आज देश भी बूझता तुम कहा हो!
माटी के तिलक साथ मेरी मांग करी सुनी
आज देश भी बूझता तुम कहा हो!
प्रिय मै और मेरी तन्हाई ढूँढती तुझे,
तुम कहां हो!
इंतज़ार की घड़िया क्यू इतनी लंबी
कहो न कहा हो!
कभी कोइ संदेशे ही प्रिय भेजो तुम
कौन से जहां हो!
बतलाओ उस लोक कि कुछ ख़बर सही
प्रिय तुम जहा हो!
मै व्याकुल विचलित सी तेरी प्रतीक्षा में
जाने तुम कहा हो!
अनिश्चितकाल प्रतीक्षा से मरण तिल तिल
बुला लो तुम जिस जहां हो!
मेरे तेरे प्रेम को अमर कर प्रिय पाहुन मेरे
तुम चले कहा हो!
देशप्रेम है स्वीकार पर नहीं निर्थक अपना प्यार
ऐ मेरे प्यार तुम कहा हो!
सुना सरहद की माटी में खोये तुम ऐसे
हर कण में समाये वहा हो!
माटी के तिलक साथ मेरी मांग करी सुनी
आज देश भी बूझता तुम कहा हो!

सिपाही

मै वतन का हूँ सिपाही 
जो सरहदों पर है दिखता

है मौत जिसे मंजूर 
जो दौलत पर नहीं बिकता
हुआ दर्द से विचलित 
पर दर्द नहीं दिखता
पर आँसुओं की स्याही से
मै प्रेम संदेश लिखता
हरने को दुःख मेरा
कोई एक कदम न बढ़ता
और मै घाव भरे कदमो से
इतिहास नया रचता
सगे और संबंधी का सनिध्य
तुम्हे सदा जचता
सोचो मुझे नवजात शिशु कि
झलक भी न मिलता
वतन के नाम हर सुबह
हर शाम सरहदों पे कटता
हमारा हर वक्त वही
जहा रोज़ मौत का मंज़र दिखता
पर खुश हूँ की कुर्बानियो से
अमन चैन है छलकता
बिना औलाद के कांधे
जिसके पिता का जनाजा है निकलता
मेहेंदि उतरने से भी पहले
मेरे दाम्पद में मातम है पसरता
मै हूँ जो माँ कि ममता को
चोटिल हो बोझिल करता
नन्हे शिशुओं कि आँखों में
स्वप्न बन कर ही विचरता
हुये शहीद से गर्दिशो में तबदील
तुम्हे क्या फर्क पड़ता
मै वतन का हूँ सिपाही
जो सरहदों पर है दिखता
वतन के नाम हर सुबह
हर शाम सरहदों पे कटता

जीत हार

कभी ख़ुशियाँ होंगी नसीब जो इस उम्मीद के सहारे थे
वह सभी जीत की फेहरिस्त में है जो कभी कभी हारे थे
फिर तुम क्यो अपनी हार का मातम मनाते हो
नई उमंग के साथ क्यो नहीं तुम नजर आते हो
जीत उसी की जिसके इरादों में बुलंदी मेरे दोस्त
जीत हार तजुर्बा  ज़िदगी का तो काहे की कोफ्त
सूर्य ढलता है हर रोज फिर नई सुबह के लिए
रोशन रात की स्याही करते छोटे छोटे से दीये
मन का विश्वास है बड़ी ताकत न भूल ऐ बन्दे
देख् आकाश की ऊँचाई को बौना करते यह परिंदे
यह जिंदगी के सबब हार जीत तो बस बहाने थे
मुकम्मल तेरे दम से होंगे जो ख्वाब तुम्हारे थे
संघर्षों से उबरे वे सभी जो कभी हालात के मारे थे
तुम अकेले ही नहीं ज़िदगी के इम्तिहान में सारे थे
कभी ख़ुशियाँ होंगी नसीब जो इस उम्मीद के सहारे थे
वह सभी जीत की फेहरिस्त में है जो कभी कभी हारे थे

खुशियों भरा गांव

लहराती फ़सलें
अपनो के जुमले
खुशियों भरा गांव
नीम की छाव
रात में अलाव
नदियों की नाव
गोरी का घूँघट
छनछनाता पनघट
बालकों का शोर
मदमस्त मोर
सोंधी सी माटी
चोखा और बाटी
हाटो पर रौनक
चिड़ियों की चहक
पतली पगडंडियाँ
चौपाल कि बतिया
बैलो की घंटी
वह ताबीज वह कंठी
रशीद का सलाम
गोपी की राम राम
जाने चड़ा किस दाँव
कहा गया गांव
कहा वह हरियाली
गांव की खुशहाली
वह सादगी का जीवन
बौर खिला उपवन
लुभावना लडकपन
अल्लड़ सा यौवन
चूल्हे की रोटी
जरूरतें थी छोटी
जीना था सस्ता
सबसे था रिश्ता
नहीं था दिखावा
एक सा पहनावा
पर विकास की दौड़ में
तरक्की कि होड़ में
बदला हवा का बहाव
टूटा गाव का लगाव
जाने चड़ा किस दाँव
खुशियों भरा गांव

Thursday, March 1, 2012

दो पल

दो पल आराम के बिता लू तो चलु,
बीते दिनो को याद कर लू तो चलु,
किया तमाम दिन इंतज़ार मंज़िल का,
आज ठहर के अपना इंतज़ार कर लू तो चलु! 
अनजान जहा में अपनी पहचान मुनासिब,
पर ख़ुद से ख़ुद का ही तार्रुफ करा लु तो चलू,
कितनों कि बात बेबात पर कभी हसा कभी रोया,
आज अपनी अंतर्मन कि दबी बात सुन लू तो चलु,

दो पल आराम के बिता लू तो चलु,

रोजाना फेसबुक पर दिखना,

वही बातें लौट फेर कर लिखना,
और रोजाना फेसबुक पर दिखना,
अब नहीं भाता!
देश के मौजूदा हालातों पर रोश आना,
क्रांति के नाम पर बेवजह जोश आना,
अब नहीं भाता!
अण्णा पर सियासियो कि बेशर्म टिप्पणी,
बाबा राम देव पर आई मुसीबत घनी,
अब नहीं भाता!
यह न समझे की हार गए हम सारे,
जियेंगे तमाम जिंदगी उम्मीद के सहारे,
दब के रह गए जोश-ए जज़्बात हम्हारे,
या साथ नहीं जब उबलते लहू तुम्हारे,
बल्कि रोज़ का तमाशा, चोट सौ सुनार कि,
दिलों में दबी चिंगारी, आंदोलन के पुकार की,
अब नहीं भाता!...अब नहीं भाता!...
जरूरत चिंगारियो में भीषण आग की,
हो लबो पर बात वह जो हो लाख की,
जोश में चलना फिर थक के कहीं रुकना,
राजनीति की चल तले सविधान का झुकना,
अब नहीं भाता!
घिनौनी सियासत और जनतंत्र का किलसना,
मौलिक अधिकारों कि बातें जहा करना मना,
अब नहीं भाता!
देश के भीतर मिलीं देशद्रोहियो को पनाह,
फैसले के हक़दार वे जिनके नामदर्ज कई गुनाह,
अब नहीं भाता!
वही बातें लौट फेर कर लिखना,
और रोजाना फेसबुक पर दिखना,
अब नहीं भाता!

देश बेच दो,

देश बेच दो,
ईमान बेच दो,
धर्म और भगवान बेच दो,
इंसानियत बेफालतु की बात,
जो करे वह इनसान बेच दो,
हवस दौलत की,
बेपनाह शोहरत की,
मिलें जिस कीमत,
हासिल करो, अदा कर दोगे,
बस....... 
देश बेच दो,
ईमान बेच दो,
सीखो खद्दर के नकाब पोशो से,
पेशावर नेताओं से,
धोखाधड़ी मुलमंत्र,
भाड़ में जाए प्रजातंत्र,
सत्ता जिनका हथियार,
नैतिकता पर धिक्कार,
करे तानाशाही,
भाये जिन्हें तबाही,
ऐसा चरित्र करो स्वीकार,
तब कहें की हार,
तो पहले.....
देश बेच दो,
ईमान बेच दो,
धर्म और भगवान बेच दो,
इंसानियत बेफालतु की बात,
जो करे वह इनसान बेच दो,

पलाश

पलाश के फूलों सी ताजगी,
तेरी अदाओं में अजब रवानगी,
फिजाओ पर शबनमी ओस कि बूँदें,
भी तेरे भीतर की ताजगी को ढूँढे,
तेरे नजरों में एक शरारत,
जो फिदा कर गई वह नज़ाकत,
जिसने भी देखा वह हुआ घायल,
तेरी सुरमयि आँखों का कायल,
समुंदर सा तूफान तेरी आँखों में,
जहा का हर सुकुन तेरी बाहों में,
रेत पर तेरा नाम लिखना,
कभी रूबरू कभी ख्वाबों में मिलना,
तितलियों के रंगों से रुपैहली,
इस जहाँ की नायाब पहेली,
तुझे देखा तो यह खयाल आया,
तारीफ उस खुदा कि जिसने तुझे बनाया!

नवचेतना आभास

नवचेतना आभास है,
व्याप्त हास विलास है,
प्रकृति खिली अनायास है,
अनूठा प्रयास है,
मौसमी अनुराग है,
प्रतीत सौंदर्य प्रयाग है,
बौर खिले बाग है,
बसंत का बिहाग है,
शीत ऋतु हुई विदा,
ग्रीष्म लीन सम्पदा,
सर्द रात्रि यदा कदा,
दिनकर पर हुई फिदा,
मन मधुर हुआ अटल,
मन में बसी नभ धरा अचल,
खिल उठे कमल दल,
सौंदर्यदामिनी प्रबल,
नवऋतु सुस्वागतम,
सुस्वागतम.....सुस्वागतम....

जीवन क्या है,

जीवन क्या है, 
यह विषय वस्तु समझने लगा!
जितना समझने लगा,
उतना ही ज्यादा उलझने लगा!
बौराया देख वर्चस्व कि लड़ाई,
मन बुझता क्यू यह मारा मारी है!
अनिंयंत्रित अपना ही आपा,
क्यू जीवन एक लाचारी है!
कैसे शांत लहर से जीवन में!
आती भूख कलह बेकारी है!
वासना और पिपासा भरी!
मनु कि अमानुस बीमारी है!
हर मन में विकसित द्वेषभावना,
जो अंतर्मन पर भारी है!
कब कैसे बदलाव हुआ,
कैसे जीवन अर्थ बदलने लगा!
जीवन पथ पर चलते चलते,
जीवन का हर पल खलने लगा!
चेतावनी हुई चुनौतिया,
और मन जीवन से डरने लगा!
एक साँस मै भी जी लू
क्यू मन से यह भाव उतरने लगा
जीवन क्या है,
यह विषय वस्तु समझने लगा!
जितना समझने लगा,
उतना ही ज्यादा उलझने लगा!

जीने का सही मायेने

क्या हासिल किया तमाम जिंदगी
जब किसी के दिल में जगह न हो सकी
माना रैन बसेरा तो बसाया तूने
पर घरौन्दे में जब खुशी समा न सकी
आबादी में तेरा लाख आना जाना
पर कोई गली भी तुझे पहचान न सकी
तेरी तिजोरी हीरे जवाहरात भरी
फिर भी जो तेरी भूख मिटा न सकी
अपनी हँसी तो दिल खोल हँसा
पर तेरी कमी किसी को रुला न सकी
ऐसे जीवन को क्या जीना यार मेरे
जो जीने का सही मायेने समझा न सकी
हरहाल खाली हाथ ही होगी वापसी
मौत के बाद किसी कि सियासत हो न सकी

आरज़ू

थी आरज़ू मेरी तुम साथ हो मेरे!
थी आरज़ू मेरी हम साथ हो तेरे!,,
पर नहीं मंजूर तुमको तो तेरी मर्जी!
ना रोकेंगी तुझे मेरी बंदिशे खुदगर्जी!
मुझे पता है तेरी यादे सोने न देगी!
यह तन्हाईयाँ मुझे जीने न देगी!
पर दुआ तुझे खूबसूरत ख्वाबों की ताबीर मिलें!
जो हरहाल में तेरा साथ न छोड़ें वह हाथ मिलें!
दिल-ए दर्द को जगाती मेरी आवाज़ न सुन!
तुझे नसीब हो गुनगुनाते जमाने कि हर धुन!
हर आहट पर तेरा खयाल बे-वजूद सही!
तू आए य ना आए बेवजह इंतज़ार सही!
मेरे हमदम ये दर्द ही सही पर हक है मेरा!
मेरी यादों पर भला कब जमाने का पहरा!
दिल कि इसी पीर के साथ जी लूँगा!
तेरे खातिर गमों का जहर पी लूँगा!
ए सनम बिन साथ तेरे!
हम थे तेरे, हम है तेरे, हम रहंगे तेरे!
थी आरज़ू मेरी तुम साथ हो मेरे!
थी आरज़ू मेरी हम साथ हो तेरे!,,

जिंदगी के सच!

समय के आगोश में कई मंज़र बदल जाते है,
जहा रेत का था बसेरा वहा समंदर नजर आते है,
तूफान किसी दस्तक का मोहताज नहीं यारों,
सपुर्ते खाक के बाद फनाह तख्तो ताज यारो!
यु भागती जिंदगी कब कैसे ठहर जाती है!
जिंदगी के सच कि बातें बड़ी बुनियादी है!
सयाने साहिल भी लहरों में फँस डूब जाते है!
पिछली सभी सोच के हर मायेने बदल जाते है!
तमाम यादे, ख्वाहिशे, ख्वाब अधुरे रह जाते!
दिलो के हर अरमान आँसुओं में बह जाते है!
फिर किस बात का गुमान अये जिंदगी!
क्यू कुछ से रंजिशें क्यू कुछ से बंदगी!
क्यू हर शख्श से से दिल नहीं मिल पाते!
क्यू समय की सरगम पर छेड़े तार बदल जाते!
तेरे अपने बस जब कुछ नही अख्तियार यारों!
जो मुमकिन नहीं फिर उसका क्यू इंतजार यारो!
तूफान किसी दस्तक का मोहताज नहीं यारों,
सपुर्ते खाक के बाद फनाह तख्तो ताज यारो!

जीवन में संकल्पों का बहुत महत्व है।

जीवन में संकल्पों का बहुत महत्व है।

झुलसाये ये सुर्ख आग चलो उस से पहले
आओ उसी आग के शोलों से मिलकर खेले
माना गहराई समुंदर की पता नहीं अब तक
तो चलो गोता लगाए अंतहीन पाताल तलक
ते़ज आँधिया न हिला दे कहीं ज़र्रा ज़र्रा
क्यो न हवा के रुख रम जाए इस तरह
क्युकी बिना तपे लोहा भी सख्त नहीं होता
और बिना चोट सोना भी आभूषण नहीं होता
तो क्यो न भाग्य के हर फैसले पर मुहर लगाए
बेबसी का रोना क्या, जो बस में करते जाए
क्यो ना हार को हराने का मजा उड़ाया जाए
नासाजी हर वक्त नहीं कब तबीयत बदल जाए
अपने मिजाज कि इबादत ख़ुद ही लिखी जाए
कोई क्या जानेगा, पहले खुदको ख़ुदही जान जाए
अपने रहते ही अपना इतिहास लिखा जाए
खुदी को करे बुलंद इतना कि खुदा भी रहम खाए
यह डर ही है जो फ़ासले मिटाते मौत के नीरज
फिर मौत से बेहतर चुनौतियो को गले लगाया जाए
भरोसा ख़ुद पर अगर तो शायद जिंदगी बदल ही जाए
अगर सही सोच से उठे कदम तो क्यू पीछे लेले
कम से कम अपने भरोसे पर भरोसा कर ले
झुलसाये ये सुर्ख आग चलो उस से पहले
आओ उसी आग के शोलों से मिलकर खेले