मुझे अपनी मर्जी से जीने की आदत थी
एक ओर जिंदगी एक ओर मोहब्बत थी
इश्कदरिया की बेरहम सी फितरत थी
दीवाने को हरहाल डुबाने की कूबत थी
सब कुछ लूट लेती है ये समंदर सी आँखे
जिन्हें जिंदगी न हो प्यारी वहीं इनमें झाखें
भाई नही पर भाई के संसार जैसे
बचपने से जवानी तक प्यार जैसे
रूठने मनाने कभी तकरार जैसे
रिश्तें नहीं मिलते दोस्त यार जैसे
भरी जेब तो यार दोस्त रिश्ते नाते की सभी की ठौर है
असलियत से रूबरू तब जब हमनवा मुफ़लिस-ए दौर है
अक्सर ही मुझे वह गली मुहल्ला शहर याद आता हैं
महल सा आलीशान न था पर मुझे मेरा घर याद आता है
एक ओर जिंदगी एक ओर मोहब्बत थी
इश्कदरिया की बेरहम सी फितरत थी
दीवाने को हरहाल डुबाने की कूबत थी
सब कुछ लूट लेती है ये समंदर सी आँखे
जिन्हें जिंदगी न हो प्यारी वहीं इनमें झाखें
भाई नही पर भाई के संसार जैसे
बचपने से जवानी तक प्यार जैसे
रूठने मनाने कभी तकरार जैसे
रिश्तें नहीं मिलते दोस्त यार जैसे
भरी जेब तो यार दोस्त रिश्ते नाते की सभी की ठौर है
असलियत से रूबरू तब जब हमनवा मुफ़लिस-ए दौर है
अक्सर ही मुझे वह गली मुहल्ला शहर याद आता हैं
महल सा आलीशान न था पर मुझे मेरा घर याद आता है
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