- असली में जो गुनाहगार है वही सिपहलसार है
किसकी नियत तलाशिये सबके सब बीमार है
सरफरोशी चले गए अब हमवतन भी लाचार है
सब अपनी अपनी कहते है दूजे की दुश्वार है
बीते दिन जब चाँदनी के तो अब अंधेरी रात है
तेरे मेरे में सिमट गयी ये अपनेपन की बात है
कौम बड़ी इंसानियत छोटी फीके हर जज्बात है
छुरे और तमंचे थामे, जुदा एकदुजे के हाथ है
कौन कहे लोग वही जिनका चोली दामन साथ है
बीते दिन जब चाँदनी के तो अब अंधेरी रात है
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Wednesday, July 31, 2013
अब अंधेरी रात है
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