- ...एक उम्र तराशने में, जिन्दगी सँवारने में,
गुजर जाते है अनमोल पल!
हाथ खाली भरने में, कुछ कर गुजरने में,
फिसल जाते है कितने कल!
शब्द सम्वाद बटोरने में, हृदय गति टोहने में,
कम पर जाते सारे विकल्प!हाथ कुछ आता नहीं, उपाय कोई बताता नही,एक उम्र भी लगती है अल्प!
जीवनभर भाग दौड़, दुविधाओ कि पथ पर आने की होड़!
कब अर्जुन फस जायेगा, सामने जीवनचक्र का अभेद मोड़!
यह कैसा विधान है इंसान परेशान है,
राज कर रहा तो कहीं, गिरवी जान है!
किसी मुठ्ठी में दम खम,
तो किसी का जीवन ही है भ्रम,
किसी की चौखट पे कुंदन के ताले,
किसी को पड़े खाने के लाले!
किसी पे खुदा मेहरबान है किसी कि दुनिया वीरान है
यह कैसा विधान है इंसान परेशान है,
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Wednesday, July 31, 2013
एक उम्र भी लगती है अल्प!
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