- ...क्यू रोये किस्मत पर बच्चे क्या तुझे बताना होगा
झोपड़पट्टी में जन्म लिया अब भी कुछ बतलाना होगा
चाहत की संगत से हर रिश्ता तुझे ठुकराना होगा
स्वप्न पले जो आँखों में उसे तुझे भुलाना होगा
माँग तेरी तपती दोहपहरी इच्छाओं को झुलसाना होगा
दुखों के अथाह से सागर से सुख का मोती पाना होगा
जीवन संघर्षों की बेला उससे हर्ष का पल चुराना होगा
महज ढांढस की चादर से अपना तन छुपाना होगा
एक वक्त की रोटी है दूजे पहर भूखे ही सो जाना होगा
क्यू रोये किस्मत पर बच्चे क्या तुझे बताना होगा
झोपड़पट्टी में जन्म लिया क्या अब भी कुछ बतलाना होगा………….
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Wednesday, July 31, 2013
इच्छाओं को झुलसाना होगा
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