Wednesday, July 31, 2013

छाया रंग काला भ्रष्टाचार है

  1. हुआ लाल गुलाबी रंग नदारात, छाया रंग काला भ्रष्टाचार है
    प्रतिदिन नए घोटाले करते, इन्हे आती नहीं डकार है
    मंत्री संतरी लूट रहे अब, दल दल में धसी सरकार है
    समाज और सेवा ताख पर रख दी, राजनीति व्यापार है
    जेब है खाली और मन है भारी, संकुचित हर अधिकार है
    महँगाई भी सर चड़ कर बोले, बेरोजगारी की मार है
    तो कैसे मने रे होली अबकी, जनता सत्ता से लाचार है
    कुंठा और निराशा पनपे, अनियन्त्रित पीरा का विस्तार है
    ऐसे जात पाँत के हेरेफेरे, अब दूर प्रेम-मनुहार- है
    पद प्रतिश्ठा मानस से ऊपर, हुयी रिश्तों की लय बीमार है
    अपने अपने स्वार्थ में उलझे, ओझल अपनापन और प्यार है
    फागुन में हुआ फाग नदारत , हम ढंढे बसंत बहार है
    तो कैसे मने रे होली अबकी, जनता सत्ता से लाचार है
    Photoकैसे मने रे होली अबकी, जनता सत्ता से लाचार है
    महँगाई में हर रंग है फीका , जबकि होली रंगों का त्यौहार है
    हर तरफ़ है हंगामा बरपा, पैने कानूनों की धार है
    नय्रे कानूनों में बाँध दिया, प्रतिबंधित छेड़छाड़ है
    यह विकृत समाज की देन है भइया, अब कुछ कहना बेकार है
    फैली लज्जा शर्म की खबरे, नित होते दुराचार है
    छेड़छाड़ रंगों के उत्सव से, मौज मस्ती दरकिनार है
    कैसे मने रे होली अबकी, जनता सत्ता से लाचार है
    हुआ लाल गुलाबी रंग नदारात, छाया रंग काला भ्रष्टाचार है 

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