- ...हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई
भरोसे की उठी मइयत, हाथों में जुदाई
आग जो भड़की वह हमने ही थी लगाई
कौन दे सहारा जब हुआ दिल ही हरजाई
एक दूजे को दफनाने की कसम जो खाई
झूठी मोहब्बत कि दिल ने रसमें निभाई
अकेलेपन की जिंदगी न जाने क्यो भाइ
क्योँकि अकेलेपन की जिंदगी न हमको भाइ
न अकेलेपन की जिंदगी न तुमको भाइ
फिर भी गंदी सियासत की करी कराई
पर हमने और तुमने मुहर है लगाइ
नतीजा..............
हर किसी से नफरत हर किसी से बुराई
जिंदगी जाने किस मोड़ पर चली आई.............
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Wednesday, July 31, 2013
झूठी मोहब्बत
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