- ...चाह के भी भूल न सकूँगा उन सम्भारो को
आँखों में रची बसी प्रिय तेरी मिलन बहारो को
देह को रोमांचित कर देने वाली धारो को
बुझा भी न सकूँगा विरह के शूल अंगारो को
तेरी याद आज भी हृदय पटल पर अंकित है
तेरी हर बात मन मस्तिष्क पर रेखांकित है
अंतहीन दर्द का रिश्ता तुझसे मन रोमांचित है
अन-अनुभूत अछूते भावों का दर्पण सुशोभित है
कैसे भूलूं सँग बिताये अनमोल नजारो को
हृदय गगन पर चमकते अनगिनत सितारों को
तुझ संग बीते कल जैसे हर्षित त्योहारो को
प्रणय के पुष्पों से चुनें हुए रंग बिरंगे हारो को
चाह के भी भूल न सकूँगा उन सम्भारो को
आँखों में रची बसी प्रिय तेरी मिलन बहारो को
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Wednesday, July 31, 2013
आँखों में रची बसी
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