Wednesday, April 11, 2012

ढल ना जाए शाम

दिल सुनने को प्रेरित है
ढल ना जाए शाम
प्रिय कुछ ऐसा कह दो
मन दुविधा में फँसा हुआ
बिगड़ी बातें बन जाएँ 
कुछ ऐसा कह दो
दर्द बहुत जमाने में
राहत दे जो लव्ज़
कुछ ऐसा कह दो
दिल से दिल के बँटवारे
पट जाए सारी खाईं
कुछ ऐसा कह दो
हाल बड़ा बैचैन तुम बिन
मेरे मन को चैन मिलें
कुछ ऐसा कह दो
माथे पर चिंतन कि रेखा
मिट जाए हर निशान
कुछ ऐसा कह दो
कब तक यह अंजानापन
हो अपनी अलग पहचान
कुछ ऐसा कह दो
मन हलचल की ओट
थम जाए तूफान
कुछ ऐसा कह दो
जीवन है निश्प्राण प्रिय
दे दो शब्दों में प्राण
प्रिय अब कुछ ऐसा कह दो
दिल सुनने को प्रेरित है
ढल ना जाए शाम
प्रिय कुछ ऐसा कह दो

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