Friday, August 26, 2011

मुकाम


है आस फिर अब जिंदगी की और अब यह कदम रुकते नही!
जब सर पे कफन है बांध लिया तो मौत से भी डरते नहीं!
धार अजब तेज है, पर्वतों को चीर के झरने यू निकलते नही!
जब हर हमराह की मंजिल एक है तो मुकाम अब बदलते नही!
सोचना क्या पूछना क्या अब इस ताम झाम में पड़ते नही!
गर पहले जानते तो सियासत के दाँव में यू ही हम फँसते नही!
है शपथ देश की बग़ैर मिटाये दुश्मनों को अब यह तन थकते नही!
है आस फिर अब जिंदगी की और अब यह कदम रुकते नही!
जब सर पे कफन है बांध लिया तो मौत से भी डरते नहीं!

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