Wednesday, August 17, 2011

आंदोलन की लहरें


74 साल के गांधीवादी अन्‍ना हजारे ने जब अनशन की हुंकार भरी तो दिल्ली पुलिस और सरकार ने उस हुंकार को निहायत कोरी धमकी मान कर अन्‍ना हजारे को तिहाड़ भेज दिया, लेकिन जब अन्‍ना के समर्थन में जनसैलाब उमड़ पड़ा तब दिल्ली पुलिस और सरकार को आभास हुआ कि अन्‍ना कि आवाज़ के आगे उनका कद बहुत छोटा है और जिसके चलते दिल्ली पुलिस को ना केवल अन्‍ना हजारे को 15 दिन की माँग माननी पड़ी बल्कि साथ ही टीम अन्ना को जिन 5 दूसरी शर्तों पर आपत्ति थी उन्हें भी मानना पड़ा, आज इतनी जद्दो जहत के बाद भी जब सरकार को अन्ना के आगे झुकना पड़ा तो सवाल यह उठता है कि क्या सरकार अनशन से पहले ही जनआवाज पर कोई सुनवाई क्यों नही करती है इस तरह के अड़ियल रवैया से देश में ही नही वरन विदेशों में भी भारत की साख पर ठेस पहुँच रही है! सिब्बल ने कल एक बयान दिया कि अन्‍ना बाहर का आदमी है वह संसदीय मामलों में दखल नही दे सकता, अरे भाई कोई उससे पूछें अगर तुम पाक साफ़ होते और अपना कार्य ईमानदारी से करते तो क्यू अन्‍ना और अन्‍ना कि तर्ज पर करोड़ों जनता को अन्‍ना बन कर तुम्हारे जैसे सांसदों पर लगाम कसने के लिए कमर कसनी पड़ती!
भाई अब पछताये क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत, सिब्बल और दिग्गी जैसे नेताओं के बयान आज उनकी बौखलाहट को दर्शा रहे है, काँग्रेस प्रवक्ता का छीछोरपन तो तब जाहिर हुआ जब उसने अपने एक बयान में यह तक कहाँ डाला की किशन बाबुराव हजारे तो ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट है इस तरह के छीछोरे बयान से आज काँग्रेस अपने असली रूप को जनता के सामने प्रदर्शित कर रही है, और अब जनता जनार्दन को पुनः विचार कि आवश्यकता है यह सरकार जनता विरोधी है या पछधर, लोकहित में उठी आवाज़ को दबाने वाले तथाकथित लोग मुजरिम है, यह समाज सेवक नही बल्कि समाज भछ्क है! इस लिए मै अपील करना चाहूँगा कि देश के सच्चे नागरिक होने के नाते देश हित में उठी आवाज़ को एकजुट हो कर अपना समर्थन दे, और जो मुजरिम है उन्हें सत्ता के गलियारे से जेल कि सलाखो तक पहुँचाने के लिए अन्‍ना हजारे के संघर्ष को सफल बनाए!  
"जय हिंद जय भारत"

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