जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Monday, August 13, 2012
मन के गुबार
मन के गुबार दबा के क्या होगा दर्द कि इंतिहा जगाँ क्या होगा जमाने में हजार रहनुमा है अनजान बने तो भला क्या होगा दूरियां मिटती है मिटाने से दिलो से दूरियां बना क्या होगा एक कदम तुम बड़ों फिर देखो साथ यह जहां होगा
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