Monday, August 13, 2012

मात पिता में बसते प्राण


  1. किसे चाहिये पंखुड़ियाँ
    इस दिल में बसा बागवान
    किसे चाहिये मूर्तियां
    इस दिल में बसा भगवान
    किसे चाहिये दीपक की लौ
    इस दिल में सूरज दिव्यमान
    ...
    चांदी की चमक अधूरी है
    इस दिल में चंदा कांतिमान
    ईश्वर की अनुकमा से
    मात पिता में ही बसते प्राण
    जो मिला उसी में सूख अपना
    जीवन में संतोषी से कल्याण
    वेदना कमियों कि तो बस
    कर देती जीवन की शाम
    और संतुष्टि विपदाओं में भी
    देती विजय श्री का इनाम
    इसलिये नहीं चाहिये पंखुड़ियाँ
    मेरे दिल में बसा बागवान
    ईश्वर की अनुकमा से
    मात पिता में ही बसते प्राण

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