- किसे चाहिये पंखुड़ियाँ
इस दिल में बसा बागवान
किसे चाहिये मूर्तियां
इस दिल में बसा भगवान
किसे चाहिये दीपक की लौ
इस दिल में सूरज दिव्यमान
...चांदी की चमक अधूरी है
इस दिल में चंदा कांतिमान
ईश्वर की अनुकमा से
मात पिता में ही बसते प्राण
जो मिला उसी में सूख अपना
जीवन में संतोषी से कल्याण
वेदना कमियों कि तो बस
कर देती जीवन की शाम
और संतुष्टि विपदाओं में भी
देती विजय श्री का इनाम
इसलिये नहीं चाहिये पंखुड़ियाँ
मेरे दिल में बसा बागवान
ईश्वर की अनुकमा से
मात पिता में ही बसते प्राण
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Monday, August 13, 2012
मात पिता में बसते प्राण
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