- कितने ही सवाल उठते है मन में
उथल पुथल करते इस जीवन में
सवाल का जबाब सवाल ही रह जाता
और मै नए जबाब में मशगूल हो जाता
हार कर भी जीतने की चाहत में
कभी तो मिलेंगे इस राहत में
...कब तलक मजबूरियाँ का रोना रोये
जो मिला उस खुशी को खोये
होती अगर दुनिया अपने बस में
तो जुझती न जिंदगी प्रश्नव्ह्यू में
और उठते न सवाल इस मन में
न करते उथल पुथल जनजीवन में
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Monday, August 13, 2012
सवाल
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