- अजी कौन कहता है
की दीवारों के कान होते है
यहा तो इंसान भी
बिना कान के होते है
किसी की कराहट न सुन सके
वह इनसान होते है
...मतलब परस्त दुनिया में
इंसान कम ज्यादा शैतान होते है
खुली आँखों से भी देख् कर
अंदेखा करना
मिसालें करी कायम
की पीठ में खंजर करना
बदल गये दस्तुर इस दुनिया के
हुए गरीब सब अपनी ही जुबा के
अब कौन किसके साथ चलता है
किसी की आहट पर भी मन खलता है
किस्से कहानी झूठ लगती है
की यह इंसानो की बस्ती है
यहा रहबसर सारे के सारे
इंसान होते है
भलमंसिययत के नेक इरादे
सब कदरदान होते है
पर्दाफाश हुआ इंसानियत का
इंसान कम ज्यादा शैतान होते है
अजी कौन कहता है
की दीवारों के कान होते है
यहा तो इंसान भी
बिना कान के होते है
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Monday, August 13, 2012
बिना कान इंसान
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