Monday, August 13, 2012

ग़ुलाम


  1. क्या पता क्या सैर सपाटा
    उसने तो जबसे आँखें खोली
    सुनी सदा एक कर्कश बोली
    जीना है तो बस काम करो
    अपने हर छड़ हराम करो
    ...
    कौड़ी के भाव बिका तभी
    जब जीवन का खिला अभि
    पर दादे से होता आया
    पीरी दर पीरी ग़ुलाम पाया
    उसकी हर सुबह चुनौती है
    सांसो पर दूजे की बपौती है
    काहे की आजादी देश में
    जब ख़ुद के लोग गोरों के भेष में
    अब भी हुक्म चलाते है
    अपने लोगो में यह बेबस रह जाते है
    खुशियों का मुँह ना देखा
    दुखों का जीवन में लेखा
    पल भर का सकून करे किनारा
    आज भी ऐसे लोग बेसहारा
    उन्हें नहीं पता खुल कर हँसना
    सदा गुजारिश हो जीवन फना
    उनको बेमतलब यह पाँच सितारा
    और बेमतलब हर सैर सपाटा
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