- क्या पता क्या सैर सपाटा
उसने तो जबसे आँखें खोली
सुनी सदा एक कर्कश बोली
जीना है तो बस काम करो
अपने हर छड़ हराम करो
...कौड़ी के भाव बिका तभीSee more
जब जीवन का खिला अभि
पर दादे से होता आया
पीरी दर पीरी ग़ुलाम पाया
उसकी हर सुबह चुनौती है
सांसो पर दूजे की बपौती है
काहे की आजादी देश में
जब ख़ुद के लोग गोरों के भेष में
अब भी हुक्म चलाते है
अपने लोगो में यह बेबस रह जाते है
खुशियों का मुँह ना देखा
दुखों का जीवन में लेखा
पल भर का सकून करे किनारा
आज भी ऐसे लोग बेसहारा
उन्हें नहीं पता खुल कर हँसना
सदा गुजारिश हो जीवन फना
उनको बेमतलब यह पाँच सितारा
और बेमतलब हर सैर सपाटा
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Monday, August 13, 2012
ग़ुलाम
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