किसी के दर्द से अगर
दर्द होता! |
तो यकीनन हर दर्द बेदर्द होता! |
न तुम दुखाते दिल मेरा! |
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता! |
तेरी टीस मेरी आह होती! |
सोचो जब एक ही राह होती! |
तो उसे अपनाने में कोई हर्ज ना होता! |
हमसे पनपा जमी पर कोई मर्ज ना होता! |
न तुम दुखाते दिल मेरा! |
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता! |
जुबान की कालिख होती इंद्र्धनुश! |
यू लुप्त न होता धरा से मनुस्य! |
आँखों में अश्रु खुशियो के बह्ते! |
मै कि जगह हम शकुन से रहते! |
बेबुनियादी बाते ना उभरती! |
असल मुद्दे पर आते, |
ना तेरी ही गलती ना मेरी ही गलती! |
मौके बेमौके मेरी कमी तूझे खलती! |
मुझे तेरी आहट से राहत ही मिलती! |
किसी को किसी कि बाते ना चुभती! |
अंधेरगर्दी पर किसी का तर्ज ना होता! |
गुनाहो का खाता यु दर्ज न होता! |
न तुम दुखाते दिल मेरा! |
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता! |
किसी के दर्द से अगर दर्द होता! |
तो यकीनन हर दर्द बेदर्द होता! |
4 comments:
मंगलवार 18/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
सुंदर ।
बहुत ही अच्छी रचना। बहुत-बहुत धन्यवाद।
दर्द का भी अपना अफसाना होता है ,अलग अलग दर्द अलग अलग कसक, पर अब क्या हो?सुन्दर
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