Sunday, January 15, 2012

उम्र का वह दौर


उम्र का वह दौर सोच कर भी मेरा मन आज भी गुदगुदाता है!
वह चौदहा पंद्रहा कि उम्र थी जब दिल किसी का भी मचल जाता है!
किसी को चुपके से देखना और बदले में उसका मुस्क्राना याद आता है!
देर रातों की करवटे और जब चाँद में उसका ही चहेरा नजर आता है!
उम्र का वह दौर सोच कर भी मेरा मन आज भी गुदगुदाता है!
... दिल में महफूज हमदम से इज़हार-ए मोहब्बत कहने की काबलियत ना थी!
दिल ने जिसे मान लिया अपना वह किसी और कि हो यह हसरत न थी!
सौ बार लिखता था नाम उसका हथेली पर कहो क्या वह मोहब्बत ना थी!
उसको ही जिंदगी का दर्जा दिया ख़ुद कि जिंदगी की असलियत ना थी!
यार दोस्तों की चुटकियों से मेरे दिल में जब एक करंट सा दौड़ जाता था!
वह वक्त था जब वक्त बेवक्त मै मोहब्बत के नग्मे ही गुनगुनाता था!
खुदा माफ करे मुझे तब खुदा से पहले महबूब का नाम याद आता था!
अजब बात थी बिना अल्फाज जब आंखो ही आँखों में समय गुजर जाता था!
आशिकी का वह आलम था की मै शायर और वह मेरी जाने ग़ज़ल थी!
जिस दिन दीदार ना हो उस दिन कि हर घड़ी गुमसुम और बोझील थी!
जिसकी यादों से आज भी जवानी का रंगे-ए गुलाल घुल जाता है!
खुदा माफ करे मै अपने आज से बेबफा नहीं पर वह याद बहुत आता है!
उम्र का वह दौर सोच कर भी मेरा मन आज भी गुदगुदाता है!
वह चौदहा पंद्रहा कि उम्र थी जब दिल किसी का भी मचल जाता है!

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