Sunday, January 15, 2012

जाने क्यू जवान हुआ!


हार गया मै थक गया, जाने कितना परेशान हुआ!
उलझे मन से बुझ रहा कैसा विधि का विधान हुआ!
क्यू कैसे प्रोण हुआ और क्यू बालक से जवान हुआ!
बचपन था अपना सुगम सुनहरा, अब विपदाओं कि खान हुआ!
जिसकी कोई पहचान नहीं क्यू ऐसी पहचान हुआ!
... अच्छा भला था बाल्यकाल जाने क्यू जवान हुआ!
पल में मचलना पल में झगड़ना जब अपने पिता के आँगन था!
तब सर्दी गर्मी की क्या चिंता, तब माँ का स्नेही आँचल था!
अब दूर देश परदेश में और यादों में घर जहान हुआ!
रोजमर्रा की भाग दौड़ से अपना मन हैरान हुआ!
हार गया मै थक गया, जाने कितना परेशान हुआ!
अच्छा भला था बाल्यकाल जाने क्यू जवान हुआ!
छोटी बड़ी कैसी भी हठ हो झट से पूरी होती थी!
मेरी आँखों में सपने देकर तब जाकर माँ सोती थी!
सर्द कुहासे कि सुबह में मेरे पिता का नित उठ जाना!
विद्यालय की घंटी से पहले हमको नित विद्यालय पहुँचना!
अपनी जरूरत को भूल भाल कर खुशियों का अंबार दिया!
एक पल भी बिसार सकूँ ना ऐसा हमको प्यार दिया!
ढूँढ रहा मन मेरा जाने वह पल कहा अंतर्धान हुआ!
शांत समुंदर की लहरों सा मन में यह तूफान हुआ!
हार गया मै थक गया, जाने कितना परेशान हुआ!
अच्छा भला था बाल्यकाल जाने क्यू जवान हुआ!

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