जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Friday, January 13, 2012
पहचान
सुंदर और सजेले चहरे, जाने कितने उजले कितने फीके! किसकी क्या पहचान करे सब ही पर नकाब दिखे! मुँह में राम बगल छुरी और नाम सभी सत्यवान लिखे! पल में पलटी खाए ऐसे की दो पैसे में ईमान बिके! सुंदर और सजेले चहरे, जाने कितने उजले कितने फीके!
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