क्यू……………….? |
हर रोज़ चौराहे पर तेज भागती गाड़ीया! |
क्यू……………….? |
रफ्तार के जुनून को लांघती साँवरिया! |
मंज़िल मिलेगी किसी को ख़बर ही नही! |
जिंदगी किस मोड़ रुकेगी ख़बर ही नहीं! |
कहीं पहुँचने कि जल्दी और सबर ही नहीं! |
दुर्घटना से भली देर, इन पंक्तियों का असर ही नहीं! |
किसी की रफ्तार, कोई हादसे का शिकार! |
इस अंधी भीड़ में मरते हर पल दो चार! |
बस उसके पीछे रह जाता बिलखता परिवार! |
ना खत्म होने वाला बेबस इंतज़ार! |
पर पल भर भी न ठहरती शहर की रफ्तार! |
हादसों के पीछे रह जाती सिसकारिया! |
यह सोचने का मौका क्यू ख़ुद को ना दिया! |
क्यू……………….? |
हर रोज़ चौराहे पर तेज भागती गाड़ीया! |
क्यू……………….? |
रफ्तार के जुनून को लांघती साँवरिया! |
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Saturday, January 21, 2012
तेज भागती गाड़ीया
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