Tuesday, May 21, 2019

गांव


गांव

जाने चढ़ा किस दाँव
वह खुशियों का गांव
लहराती फ़सलें
अपनो के जुमले
खुशियों भरा गांव
नीम की छाओं
रात में अलाव
नदियों की नाव
गोरी का घूँघट
छनछनाता पनघट
कुंडी की खटखट
खेलते नटखट
बालकों का शोर
मदमस्त मोर
सोंधी सी माटी
चोखा और बाटी
हाटो पर रौनक
रतजगे की ढोलक
फूलों की महक
चिड़ियों की चहक 
पतली पगडंडियाँ
चौपाल कि बतिया
बैलों की घंटी
वो ताबीज वो कंठी
रशीद का सलाम
गोपी की राम राम
जाने चढ़ा किस दाँव
वह खुशियों का गांव
कहा वह हरियाली
गांव की खुशहाली
वह सादगी का जीवन
बौर खिला उपवन
लुभावना लड़कपन
अल्लड़ सा यौवन
चूल्हे की रोटी
जरूरतें थी छोटी
जीना था सस्ता
सबसे था रिश्ता
नहीं था दिखावा
सादा था पहनावा
पर विकास की दौड़ में
तरक्की कि होड़ में
बदला हवा का बहाव
टूटा गांव का लगाव
चढ़ गया दाँव
वह खुशियों का गांव

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