Tuesday, May 21, 2019

मैं देवी स्वरूप हूँ




पढ़ा था बचपन मे देवी का स्वरूप हूँ
मैं ही समस्त धरा में ममत्व का रुप हूँ
जननी हूँ मैं जीवन का अटल स्रोत हूँ
प्रीतम पे वारी मैं प्रेम से ओत प्रोत हूँ

जानें कितनी गाथाएँ अनगिनत रचनाएं
मंदिर मंदिर हैं मेरी ही पावन प्रतिमाएं
किंतु सत्य विपरित मैं रही अभागी
बन राम की संगनी, गयी मैं त्यागी

दुःखो के भवसागर में, मैं डूबी अथाह
बन सती जनमन हेतु स्वीकारती चिता
नारी पूज्य जीवन जननी लगे मिथ्या
देव श्राप से पाषाण बनती मैं अहिल्या

लखन चले राम संग कुछ कहती
मै सहर्ष विरह की अग्नि को सहती
वर्तमान में भी अस्तित्व की पुकार हूँ
सृजन में क्रीड़ामयी साज श्रंगार हूँ

प्रेयसी, भगनी, संगनी, माँ बनती
धूप की भांति मैं संबंधों में उतरती
अनायास जीवन मे आता प्रलाप है
भेदता शब्द, अभिशाप सा तलाक है

सुनना, सुन कर सबके मन का बुनना
मेरी नियति जन्म जन्म जीवन जनना
चारदीवारी में मौन सावित्री सी मैं अनूप हूँ
सौंदर्य संग पलती अनेक पीढ़ा कुरूप हूँ

हाँ मैं ही हूँ प्रेम, समर्पित ममता का रूप हूँ
पर मिथ्या सा लगता मैं  देवी स्वरूप हूँ


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