जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Friday, December 16, 2011
आंदोलन
लुटे अपने ही घर में कि दिलों दिमाग में अजब घबराहट है! शुक्र है अण्णा के आंदोलन से लगी बदलाव की आहट है! आक्रोशी जनता में अब फिर से कुछ करने की चाहत है! राजनितिग्य खेमों में छायी जानआंदोलन से विचित्र आफत है!
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