हिलते दरवाजे की जर्जर हालत
जीवन से मांगे हर पल मौहलत
भीतर तक जो चाट गयी
दीमक हिम्मत काट गयी
हिलती चूरे हिलते कब्जे
एक दूजे का दर्द है समझे
एक दिन का था नही परिवर्तन
जब समय रहते न किया जतन
तब हालातो ने किया पतन
अब पीर दुखदायी रोये मन
टूटी साँसे देती आहट
भंगुर मन की घबराहट
मौत मिले अब कौन बखत
वक्त आखरी जब देता दस्तक
हिलते दरवाजे की जर्जर हालत
जीवन से मांगे हर पल मौहलत
देश के बिगड़ते हालातो के लिए हम सभी जिम्मेदार है क्योकी भागमभाग जिंदगी और पैसा कमाने
की होड़ में देश के प्रति अपने कर्तव्यों से लगभग विमुक्त होते जा रहे तभी देश में अव्यवस्था का माहोंल
पनप रहा है और अपराधिक चरित्र के लोग देश की सत्ता पर काबिज हो रहे, यह भ्रष्टाचार एक दिन की
देंन नही है बल्कि हम सभी की विगत वर्षो की नाकारात्मक प्रवर्तियो का खामियाजा है जो देश को दीमक
की तरह खोखला कर रहा है, सोचिये यदी आज नही तो कभी नही, इस दिशाविहीन राजनीति के परिवर्तन
के लिए अपने विचार और सुझाव दे..... धन्यवाद .....नीरज सक्सेना