Saturday, November 9, 2013

गुलामी के प्रतीक

लालकिले की प्राचीर से फिर वही वादे किये
जनता की कौन सुने जब वजीर ही रो दिए
न बदला है न बदलेगा यह इशारे कर दिए
लौट चल ठीया परे आस लगाए किस लिए
प्याज के आसुओ से आख को पीड़ा नही
भूख से मरने का दिमाख में कीड़ा नही
तो जैसे तैसे जीते आये वैसे ही जी लीजिये
स्वतन्त्र देश में.......
 बस स्वतंत्रता की इच्छा ही न कीजिए
जो स्वतन्त्र है वह केवल झंडा फैरायेंगे
हम गुलामी के प्रतीक तालिया बजायेंगे
वह हम्हे नारा और वादों के बीच नचाएंगे
और हम उम्र के पैर, उम्मीदों पर थिरकायेंगे
झूठ की बुनियाद पर देखो मसीहा चल दिये
सियासत के मैदान में यह कैसे बीज बो दिये
न बदला है न बदलेगा यह इशारे कर दिए
लौट चल ठीया परे आस लगाए किस लिए


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