- योग से विजय कि जगह भोग से विजय का नारा बुलंद कराने वाले सरकारी मेहमानों को सजा हो इसके लिए हम आप लाख चाहे तो क्या होता, वही होता है जो मंजुरे कानून होता है, तभी तो आतंकवादी, अपराधी, बलात्कारी कानूनी दाँव पैच से अपने ज़ुल्मों सितम की पैरवी इत...नी लंबी खीँच ले जाते है की मासूम लाचार जनता समय के साथ भुलाने पर मज़बूर हो जाती है और निठारी केस के दरिन्दे या मुंबई ब्लास्ट के हत्यारे निश्चिंती के साथ सरकारी मेहमान बन कर एक आम आदमी के मुँह पर तमाचा मारने में कामयाब हो जाते है! यह भारत का कानून और सियासत का कटु सत्यं है.......................
- लाल पत्थरो के महल में जाने क्या क्या बात हुयी!तीनों पहर बीत गये सुबह शाम और फिर रात हुयी!
सड़कों पर उमड़ा सैलाब तो लाठी कि बरसात हुयी!
हरबार की तरह विश्वास था टूटा अरमानो कि घात हुई!
एक तरफ़ जनता सारी दूजी ओर नेताओं की जात हुयी!
वाद विवाद ...खोखले मतभेद दिखावे की जूता लात हुयी!
टिकी फैसले पर थी आँखें पर धूमिल सियासियो के हाथ हुयी!
लाल पत्थरो के महल में जाने क्या क्या बात हुयी!
तीनों पहर बीत गये सुबह शाम और फिर रात हुयी!See more
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Saturday, December 29, 2012
लाल पत्थरो के महल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment