- जाते जाते अँगरेजों के, यह किसका श्राप घर कर गया!
नाम की आजादी पर लोकतंत्र कुतंत्र में बदल गया!
कहने को इनमें मतभेद तो होते है पर मनभेद नहीं होते
सियासियों के दावपेच में दल दल के अंतर्विरोध नहीं होते
लोकपाल जनहित में था सो हर दल एकमत विरोध ...कर गया
एफ.डी.ए था खद्दर के माकूल इसी लिए एकमत बन गया
विरोध के दिखावे हुए और महँगाई का स्तर बड़ गया
गरीबी में आटा गीला उस पर सवाया तीर चल गया
फिर आम आदमी को क्या फर्क की कौन मंत्री बन गया
आम घास जो बना वही देश में जी का जंजाल बन गया
जाते जाते अँगरेजों के, यह किसका श्राप घर कर गया!
नाम की आजादी पर लोकतंत्र कुतंत्र में बदल गया!See more
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Saturday, December 29, 2012
श्राप
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