जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Saturday, December 29, 2012
एहसास
हुआ जब एहसास उन्हें मोहब्बत का चाह के भी मुझे पा न सके दर्द था उनको भी दर्दे दिल का पर मेरा सहारा पा ना सके मेरे क़रीब आने की कोशिस में सारी रात वह मेरे सिरहाने रोते रहे हुआ था सफर पूरा उन्हें मनाने मे इसलिये हम मजबूर कब्र में सोते
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