Thursday, March 1, 2012

जीवन क्या है,

जीवन क्या है, 
यह विषय वस्तु समझने लगा!
जितना समझने लगा,
उतना ही ज्यादा उलझने लगा!
बौराया देख वर्चस्व कि लड़ाई,
मन बुझता क्यू यह मारा मारी है!
अनिंयंत्रित अपना ही आपा,
क्यू जीवन एक लाचारी है!
कैसे शांत लहर से जीवन में!
आती भूख कलह बेकारी है!
वासना और पिपासा भरी!
मनु कि अमानुस बीमारी है!
हर मन में विकसित द्वेषभावना,
जो अंतर्मन पर भारी है!
कब कैसे बदलाव हुआ,
कैसे जीवन अर्थ बदलने लगा!
जीवन पथ पर चलते चलते,
जीवन का हर पल खलने लगा!
चेतावनी हुई चुनौतिया,
और मन जीवन से डरने लगा!
एक साँस मै भी जी लू
क्यू मन से यह भाव उतरने लगा
जीवन क्या है,
यह विषय वस्तु समझने लगा!
जितना समझने लगा,
उतना ही ज्यादा उलझने लगा!

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