Monday, March 12, 2012

खूबसूरती

तुम किसी भी दिल में हसरत जगा दो
तुम वह की उमर की हर दहलीज़ भुला दो
तुम्हे इश्क कहूँ या बेकरार दिल की बेबसी
जिसे एक पल भी बिसार न सकूँ तुम वह हँसी
इस खूबसूरती पर तुम्हे भी कभी तो नाज़ होता होगा
तुम्हे कोई और चाहे तो खुदा को भी ऐतराज होता होग
मै कह सकता हूँ खूबसूरती की मुकम्मल तस्वीर हो तुम
जिंदगी गुल से गुलजार बन जाए वह तक़दीर हो तुम
मानता हूँ कि मै तेरे रूप पर कायल हो गया हूँ
हां मै तेरी एक ही झलक में घायल हो गया हूँ
ऐ जाने ग़ज़ल तुम तब्बसुम तुम नज्म तुम बेमिसाल हो
उलझ के रह गया तुझमें तुम वह महजबीं ख्याल हो
उफ ख्यालो निकलना भी चाहूं तो नामुमकिन है
अब ना बस में मेरी रातें न मेरे दिन है
तुम क्या हो और किसी को क्या बना दो
हर बोझिल धड़कनों में तुम चाहत जगा दो
तुम किसी भी दिल में हसरत जगा दो
तुम वह की उमर की हर दहलीज़ भुला दो

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