नवचेतना आभास है,
व्याप्त हास विलास है,
प्रकृति खिली अनायास है,
अनूठा प्रयास है,
मौसमी अनुराग है,
प्रतीत सौंदर्य प्रयाग है,
बौर खिले बाग है,
बसंत का बिहाग है,
शीत ऋतु हुई विदा,
ग्रीष्म लीन सम्पदा,
सर्द रात्रि यदा कदा,
दिनकर पर हुई फिदा,
मन मधुर हुआ अटल,
मन में बसी नभ धरा अचल,
खिल उठे कमल दल,
सौंदर्यदामिनी प्रबल,
नवऋतु सुस्वागतम,
सुस्वागतम.....सुस्वागतम....
व्याप्त हास विलास है,
प्रकृति खिली अनायास है,
अनूठा प्रयास है,
मौसमी अनुराग है,
प्रतीत सौंदर्य प्रयाग है,
बौर खिले बाग है,
बसंत का बिहाग है,
शीत ऋतु हुई विदा,
ग्रीष्म लीन सम्पदा,
सर्द रात्रि यदा कदा,
दिनकर पर हुई फिदा,
मन मधुर हुआ अटल,
मन में बसी नभ धरा अचल,
खिल उठे कमल दल,
सौंदर्यदामिनी प्रबल,
नवऋतु सुस्वागतम,
सुस्वागतम.....सुस्वागतम....
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