Saturday, November 9, 2013

अंधियारी रात


लो मिटी अंधियारी रात जब सुबह ने दस्तक दी
उम्र की दहलीज ने फिर जिंदगी को मोहलत दी
कब किसे क्या हो जाए अगले पल की खबर नही
मौत लगी उसके गले जिसमे जीतने का जिगर नही
हम हाथ खाली आये थे और खोने की फ़िक्र नही
उड़ गए जो परिंदे अब उनका आसमा में जिक्र नही
एक दिन और मिला क्यों और पाने की फितरत दी
मौहब्बत की गुमनामियाँ ढेर सीने में नफ़रत दी
साथ मिल बैठने की सदियाँ कब के गुजर गयी
काफिला पीछे गया पर खामोशियो का सफ़र नही
दिल दर्द की चीख से इंसानियत भी डर गयी
फासले खुद से बढ़े हर नजदीकिया फिसल गयी
बनावटी मुस्कान ने होठो को एक नयी कूबत दी
गिरगिट से बदलते लोग हम्हे वैसी ही सोहबत दी
यह सुबह क्या कहे असल रात की खुद नौबत दी
मौहब्बत की गुमनामियाँ ढेर सीने में नफ़रत दी


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