- मानस हित कुछ कीजिये, बिन कीजे सब बेकार
जीवन यू ही बीता जात है, बचे दिन अब चार
मोह माया भी अर्थ है जिससे यह संसार
पूर्ण जगत् से मोह करो जो जीवन का सार
क्योँकि इस जीवन के बाद बस रह जाए व्यवहार
कौन है अपना कौन पराया
... किसका कौन सदा रह पाया
जोड़ तोड़ की मोह और माया
तो जैसे आया तन वैसे जाया
तो मंथन की इस बेला में कर पुनहा विचार
रहे बचो से कर अपनो से अपनो का विस्तार
एकाकी जीवन में सांझी सुबह का हो प्रसार
मिल बाँट कर कट जाते काँटों के भी अम्बार
मानस हित कुछ कीजिये, बिन कीजे सब बेकार
जीवन यू ही बीता जात है, बचे दिन अब चार
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Saturday, December 29, 2012
मानस हित
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