- सर्द रातों में काँपते होठों पर तेरे नाम की दस्तक
कोसों दूर सनम तू पर खीँच लाया यादों का चुंबक
ख़ुशबू फूलों कि कहा लुभाती ज़हन में तेरी ही महक
तेरी आहट तकती निगाहे और राहो में बिछी है पलक
मेरे प्यार के पंछी एक बार तो मेरे मन में चहक
मै यहा तू कहा मिटा भी दे दर्दे दिल कि हर कसक
सर्द रातों में काँपते होठों पर तेरे नाम की दस्तक
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Saturday, December 29, 2012
सर्द रातों में काँपते होठ
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